Sunday, August 1, 2010

31 जुलाई प्रेमचंद जयंती पर सेमिनार
‘आज के सन्दर्भ मैं प्रेमचंद’
युगान्तकारी कालजयी रचनाकार थे प्रेमचंद सरला माहेश्वरी

कोलकाता, 31 जुलाई माहेश्वरी पुस्तकालय और सांस्कृतिक संस्था अकृत के संयुक्त तत्वावधान में हिंदी साहित्य के स्वर्णिम हस्तक्षर मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर ‘आज के सन्दर्भ में प्रेमचंद’ विषयक परिचर्चा गोष्ठी वरिष्ठ लेखक और कवि मानिक बच्छावत की अध्यक्षता में महेश्वरी पुस्तकालय कक्ष में आयोजित की गई प.बं.राज्य विश्वविद्यालय के उपकुलपति डॉ.अशोक रंजन ठाकुर ने गोष्ठी का उदघाटन करते हुए कहा कि प्रेमचंद पर कार्य होना चाहिये और इसी दिशा में प्रेमचंद पर हमारे विश्वविद्यालय में प्रेमचंद परिषद का गठन किया गया है प्रेमचंद के माध्यम से ही हम पिछड़े वर्ग की स्थिति को समझ सकते हैं इसलिए प्रेमचंद को पठन-पाठन में शामिल किया जाना चाहिये प्रेमचंद की १२५ वीं जयंती पर भारत सरकार द्वारा स्थापित समिति की संयोजक, कार्यक्रम की प्रधान अतिथि भू.पू. सांसद और लेखिका सरला महेश्वरी ने कहा कि प्रेमचंद देश के लोकोन्मुखी प्रगतिशील और जनवादी साहित्य के अमूल्य धरोहर हैं बतोर महादेवी प्रेमचंद भुलाये नहीं जा सकते, क्योंकि उन्हें भूलना जीवन के सत्य को भुलाना है प्रेमचंद को याद करने का मतलब है कि हम आज भी धर्म ,जाति ,वर्ण से परे इंसान को याद करते है - उसकी इंसानियत को याद करते हैं - अन्याय ,अत्याचार ,शोषण से संघर्षरत जनता के साथ खड़े हैं वे एक प्रकाश स्तंभ हैं जो जीवन के अँधेरे से लड़ते है ,इसलिए प्रेमचंद अपने युग के प्रवर्तक साहित्यकार ही नहीं थे बल्कि युगान्तकारी कालजयी रचनाकार थे पूरे भारतीय साहित्य में प्रेमचंद पहले एक ऐसे लेखक हैं जो साम्राज्यवादी शक्तियों से मुक्ति के साथ जनता की आर्थिक मुक्ति को सामाजिक मुक्ति के रूप में देखते हैं उनका मानना था कि साहित्य राजनीति के पीछे नहीं आगे चलने वाली चीज है लेखक,कवि और टिप्पणीकार प्रियंकर पालीवाल ने कहा कि जीवन को समझने के लिए प्रेमचंद के निबन्धो और चिंतन को देखना होगा प्रेमचंद के निबंध ‘मानसिक पराधीनता’ और ‘महाजनी सभ्यता’ का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि जीवन पर उनकी व्यापक चिंताएं हैं वरिष्ठ पत्रकार बिशंभर नेवर ने कहा कि समग्र रूप से प्रेमचंद आम जनता के संघर्ष के प्रतीक हैं वरिष्ठ पत्रकार राजीव हर्ष ने ‘बड़े घर की बेटी’ कहानी का जिक्र करते हुए कहा कि प्रेमचंद साहित्य के ऋषि थे उनके साहित्य का मनोवैज्ञानिक पक्ष सबल है प्रेमचंद का साहित्य आज भी प्रासंगिक है उनकी रचनाओं पर कार्यक्रम आयोजित होने चाहिये कवियत्री और प्रेमचंद विशेषज्ञ डॉ. नीलम सिंह ने कहा के प्रेमचंद और उनका साहित्य कभी अप्रासंगिक नहीं हो सकता क्योंकि उनका आधार मानव जीवन की गहन अनुभूतियाँ और सच्चाई है आज हम समाज की जिन विकृतियों को देखते हैं, उन्हें प्रेमचंद पहले ही उजागर कर चुके थे महेश्वरी बालिका विद्यालय की शिक्षिका बबिता श्रीवास्तव ने कहा कि प्रेमचंद देश की ज्वलंत समस्याओं को अपनी यथार्थवादी कहानियों में लाए साम्प्रदायिकता का उन्होंने विरोध किया कथाकार विजय शर्मा ने कहा कि प्रेमचंद ने गरीबी, वर्ग चेतना, नारी शोषण जैसे विषयों पर लिखा है वे जमीर के लेखक थे प.बं. राज्य विश्वविद्यालय की प्रेमचंद परिषद की संयुक्त संयोजक श्रेया जायसवाल ने कहा कि वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के कथाकार थे उनकी दृष्टि समाज के सभी वर्गों, सभी स्तरों तक जाती थी उनका संपूर्ण साहित्य ही जनता की आवाज़ बन गया कार्यक्रम के आरम्भ में महेश्वरी पुस्तकालय के उपाध्यक्ष बलदेव बाहेती ने सभी का स्वागत किया और अकृत के अध्यक्ष हरिनारायण राठी ने अंत में आभार व्यक्त किया शुरुआत में सभी ने प्रेमचंद के चित्र पर माल्यार्पण किया और अमिताभ महेश्वरी ने कवि शंकर महेश्वरी के गीतों की स्वरबद्ध लयात्मक प्रस्तुति की संचालन केशव भट्टड़ ने किया

केशव भट्टड़ , मीडिया प्रभारी , 9330919201