Tuesday, May 25, 2010


रंगकर्मी श्यामानंद जालान के निधन पर शोक

पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज हिंदी के प्रसिद्ध नाट्यकार और कलाकार श्यामानंद जालान के निधन पर गहरा शोक प्रकट करता है एक वर्ष तक कैंसर से जूझने वाले 79 वर्षीय जालान का निधन कल हुआ स्कॉटिश चर्च कोलेज के छात्र जालान ने 1949 में ‘नया समाज’ से अपनी नाट्य अभिनय यात्रा और 1953 में बच्चों के नाटक ‘एक थी राजकुमारी’ से नाट्य निर्देशन की यात्रा प्रारम्भ की 1934 में एक पारंपरिक मारवाड़ी परिवार में जन्में जालान ने हिंदी नाटकों के अलावा बंगला नाटकों में भी कार्य किया पश्चिम बंग नाट्य उन्नयन समिति के 1972 में मंचित नाटक ‘तुगलक’ में उन्होंने शम्भू मित्र, देबब्रत दत्ता और रुद्रप्रसाद सेनगुप्ता के साथ काम किया 1955 में उन्होंने ‘अनामिका’ की स्थापना की और इसके साथ ही कोलकाता में हिंदी के गंभीर नाटकों का दौर शुरू हुआ नाटकों के अलावा जालान ने फिल्मों और टीवी सीरियलों में अभिनय और निर्देशन किया उनके द्वारा अभिनीत फिल्मों में श्याम बेनेगल की ‘आरोहण’, एम. एस. सथ्यु की ‘ कहाँ कहाँ से गुजार गया’ और रोनाल्ड जोफ्फ़ की ‘सिटी ऑफ जॉय’ उल्लेखनीय हैं थियेटर के अलावा उनका योगदान अन्य क्षेत्रों में भी रहा पेशे से एडवोकेट जालान ‘संगीत नाटक अकेडमी’ के उपाध्यक्ष, ‘कत्थक केंद्र’,’साइंस सिटी’ और कोलकाता के ‘बिरला इंडस्ट्रियल एंड टेक्नॉलोजी म्यूजियम’ के अध्यक्ष रहे उन्होंने नृत्य और नाटक को समर्पित संस्था ‘पदातिक’ की स्थापना की जालान ने इब्सेन, ब्रेख्त, रबिन्द्रनाथ, बादल सरकार को हिंदी में प्रस्तुत किया महाश्वेता देवी के उपन्यास ‘हज़ार चौरासी की माँ’ को नाट्य रूप दिया ‘आषाढ का एक दिन’ (1960) और ‘आधे अधूरे’ (1970) के लिये नाट्य प्रेमी उन्हें हमेशा याद रखेंगे पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज के केंद्रीय कार्यकारिणी के सदस्य नाट्य निर्देशक प्रताप जायसवाल ने श्यामानंद जालान के निधन पर शोक प्रकट करते हुए कहा कि श्यामानन्द जालान का निधन पुरे देश के रंगमंच की एक बड़ी क्षति है कोलकाता के हिंदी रंगमंच को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित और प्रतिष्ठित करने में उनकी ऐतिहासिक भूमिका रही श्यामानंद जी पदातिक मिनीयेचर थियेटर के माध्यम से इंटिमेट थियेटर की शुरुआत करने वाले पुरोधा थे हम उनके शोक संतप्त परिवार के प्रति हार्दिक संवेदना ज्ञापित करते हैं नाट्य समिक्षक प्रेम कपूर ने श्यामानंद जालान को कोलकाता का ग्रेटेस्ट शोमैन बताते हुए कहा कि उनका जाना हिंदी रंगमंच की अपूरणीय क्षति है वे प्रयोगधर्मी नाट्य निर्देशक थे हज़ार चौरासी की माँ, लहरों के राज हंस आदि कई यादगार नाटक उन्होंने दिए रामकथा रामकहानी के कथानक पर मतविरोध हो सकता है लेकिन प्रस्तुति लाजवाब थी उनका स्थानापन्न निकट भविष्य में कहीं दिखाई नहीं पड़ता

केशव भट्टड़

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