सामाजिक और राजनितिक विषयों पर भगतसिंह का चिंतन - 1
धर्म और हमारा स्वतंत्रता संग्राम
कोलकाता 02 नवंबर विद्यार्थियों के बीच शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के विचारों को फैलाने के लिए भगतसिंह विचार मंच की स्थापना की गई है शहीद-ए-आज़म भगतसिंह की छोटी बहन बीबी अमर कौर के पुत्र और शहीद भगतसिंह शोध केन्द्र,लुधियाना के प्रो. जगमोहन सिंह मंच के संरक्षक हैं भगत सिंह विचार मंच ने भगत सिंह के लेखन पर महीने में दो बार विचार गोष्ठी आयोजित करने का निर्णय लिया है गत 9 अक्टूबर , शनिवार को शहीद यादगार समिति के कार्यालय में धर्म और हमारा स्वतंत्रता संग्राम विषय पर मंच के कार्यकारी अध्यक्ष केशव भट्टड़ की अध्यक्षता में विद्यार्थियों की पहली परिचर्चा गोष्ठी हुई
भगत सिंह विचार मंच की संयुक्त संयोजक श्रेया जायसवाल ने कहा कि बाकुनिन के इश्वर पर अनास्था सम्बन्धी विचारों ने भगत सिंह को गहरे तक प्रभावित किया भगतसिंह कहते थे कि अंग्रेजों की हुकूमत यहाँ इसलिए नहीं है कि इश्वर ऐसा चाहता है, बल्कि इसलिए है कि उनके पास ताकत है और हम में उनके विरोध की हिम्मत नहीं है तमाम भक्ति-भाव के बाद भी भारत को मुक्त कर देने की भावना इश्वर ने अंग्रेज साम्राज्यवादियों को नहीं दी सब कुछ भगवान है , मनुष्य कुछ भी नहीं- ये संस्कार मनुष्य के आत्म विश्वास को खत्म कर देते हैं धर्म के विषय में कार्ल मार्क्स ने कहा था कि - “मनुष्य धर्म बनाता है, धर्म मनुष्य को नहीं बनाता” भगतसिंह पूछते हैं – “ तुम्हारा सर्व शक्तिमान ईश्वर व्यक्ति को उस समय क्यों नहीं रोकता है जब वह कोई पाप या अपराध कर रहा होता है ? क्या वह मनुष्य जाति के इन कष्टों का मज़ा ले रहा है, वह नीरो है, चंगेज है तो उसका नाश हो वें कहते हैं-“क्रांति के लिए खुनी लड़ाईयां अनिवार्य नहीं है और न हि उसमे व्यक्तिगत प्रतिहिंसा के लिए कोई स्थान है वह बम और पिस्तोल का संप्रदाय नहीं है क्रांति से हमारा अभिप्राय है – अन्याय पर आधारित मौजूदा समाज-व्यवस्था में आमूल परिवर्तन स्वतंत्रता के उपासक सज्जन धर्म को दिमागी गुलामी का नाम देते हैं वे धर्म को अपनी राह का रोड़ा मानते हैं हमारी आज़ादी का अर्थ केवल अंग्रेजी चंगुल से छुटकारा पाने का नाम नहीं, वह पूर्ण स्वतंत्रता का नाम है-जब लोग परस्पर घुल मिलकर रहेंगे और दिमागी गुलामी से भी आज़ाद हो जायेंगे”
भगत सिंह विचार मंच के संयुक्त संयोजक दिनेश शर्मा ने बाबा नागार्जुन की लंबी कविता “भगतसिंह” का पाठ किया श्री शर्मा ने कहा कि हमारी समस्या यह है कि एक तो पढ़ने के लिए भगत सिंह पर पर्याप्त पुस्तकें नहीं है ,दूसरे इन्हें पढ़ कर परीक्षा में पास नहीं हो सकते क्योंकि परीक्षा पास करने के हिसाब से यह पढाई का विषय ही नहीं बना है मैंने जितना भी पढ़ा है, लगता है के भगत सिंह को लोगों तक पहुंचाने से पहले खुद तक पहुंचाना जरुरी है यह विषय व्यापक चर्चा की मांग करता है लोग कहतें हैं कि भगतसिंह ने नास्तिकता पर “मैं नास्तिक क्यों हूँ ” निबंध बहुत अच्छा लिखा है और इसी कारण मैं धर्म को नहीं मानता हाय रे अंध भक्ति मुझे लगता है कि इसके पीछे उनकी भावना थी कि लोग उनके विचारों को जाने और विस्तृत अध्यन-मनन करें और स्वयं निष्कर्ष निकाले उनके इसी निबंध की एक पंक्ति “अध्यन की पुकार मेरे मन के गलियारों में गूंज रही थी”, अब मेरे मन में भी गूंज रही है भगत सिंह ने कहा है कि विरोधियों द्वारा रखे गये तर्कों का सामना करने के लिए अध्यन करो, अपने मत के समर्थन में तर्क देने के लिए पढ़ो प्रत्येक मनुष्य को विकास के लिए प्रचलित रुढियों-विश्वासों को तर्क की कसौटी पर कसना होगा अंध विश्वास नहीं तर्क के बाद सिद्धांत अथवा दर्शन का विश्वास करना होगा भगतसिंह पर अध्यन कर आपस में उस अध्यन को बांटना भी होगा भगतसिंह विचार मंच की यह परिचर्चा गोष्ठियां इसमें काफी सहायक हो सकती है अपने व्यक्तव्य के अंत में उन्होंने सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता के अंश का पाठ किया - “ऐसा क्यों होता है ? / कि धर्मग्रन्थ छूकर भी / किसी आदमी के हाथ / जंगली जानवर के पंजे में बदल जाते हैं / जहरीले नाखून से वह / इंसान की सूरत नोचने लगता है / और ईश्वर का नाम लेते ही / जीभ लपलपाने लगती है / xxx/ मत्रों और आयतों की जगह / दहाड़ सुनाई देती है
आभार व्यक्तव्य के बाद परिचर्चा समाप्त हुई
केशव भट्टर
धर्म और हमारा स्वतंत्रता संग्राम
कोलकाता 02 नवंबर विद्यार्थियों के बीच शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के विचारों को फैलाने के लिए भगतसिंह विचार मंच की स्थापना की गई है शहीद-ए-आज़म भगतसिंह की छोटी बहन बीबी अमर कौर के पुत्र और शहीद भगतसिंह शोध केन्द्र,लुधियाना के प्रो. जगमोहन सिंह मंच के संरक्षक हैं भगत सिंह विचार मंच ने भगत सिंह के लेखन पर महीने में दो बार विचार गोष्ठी आयोजित करने का निर्णय लिया है गत 9 अक्टूबर , शनिवार को शहीद यादगार समिति के कार्यालय में धर्म और हमारा स्वतंत्रता संग्राम विषय पर मंच के कार्यकारी अध्यक्ष केशव भट्टड़ की अध्यक्षता में विद्यार्थियों की पहली परिचर्चा गोष्ठी हुई
भगत सिंह विचार मंच की संयुक्त संयोजक श्रेया जायसवाल ने कहा कि बाकुनिन के इश्वर पर अनास्था सम्बन्धी विचारों ने भगत सिंह को गहरे तक प्रभावित किया भगतसिंह कहते थे कि अंग्रेजों की हुकूमत यहाँ इसलिए नहीं है कि इश्वर ऐसा चाहता है, बल्कि इसलिए है कि उनके पास ताकत है और हम में उनके विरोध की हिम्मत नहीं है तमाम भक्ति-भाव के बाद भी भारत को मुक्त कर देने की भावना इश्वर ने अंग्रेज साम्राज्यवादियों को नहीं दी सब कुछ भगवान है , मनुष्य कुछ भी नहीं- ये संस्कार मनुष्य के आत्म विश्वास को खत्म कर देते हैं धर्म के विषय में कार्ल मार्क्स ने कहा था कि - “मनुष्य धर्म बनाता है, धर्म मनुष्य को नहीं बनाता” भगतसिंह पूछते हैं – “ तुम्हारा सर्व शक्तिमान ईश्वर व्यक्ति को उस समय क्यों नहीं रोकता है जब वह कोई पाप या अपराध कर रहा होता है ? क्या वह मनुष्य जाति के इन कष्टों का मज़ा ले रहा है, वह नीरो है, चंगेज है तो उसका नाश हो वें कहते हैं-“क्रांति के लिए खुनी लड़ाईयां अनिवार्य नहीं है और न हि उसमे व्यक्तिगत प्रतिहिंसा के लिए कोई स्थान है वह बम और पिस्तोल का संप्रदाय नहीं है क्रांति से हमारा अभिप्राय है – अन्याय पर आधारित मौजूदा समाज-व्यवस्था में आमूल परिवर्तन स्वतंत्रता के उपासक सज्जन धर्म को दिमागी गुलामी का नाम देते हैं वे धर्म को अपनी राह का रोड़ा मानते हैं हमारी आज़ादी का अर्थ केवल अंग्रेजी चंगुल से छुटकारा पाने का नाम नहीं, वह पूर्ण स्वतंत्रता का नाम है-जब लोग परस्पर घुल मिलकर रहेंगे और दिमागी गुलामी से भी आज़ाद हो जायेंगे”
भगत सिंह विचार मंच के संयुक्त संयोजक दिनेश शर्मा ने बाबा नागार्जुन की लंबी कविता “भगतसिंह” का पाठ किया श्री शर्मा ने कहा कि हमारी समस्या यह है कि एक तो पढ़ने के लिए भगत सिंह पर पर्याप्त पुस्तकें नहीं है ,दूसरे इन्हें पढ़ कर परीक्षा में पास नहीं हो सकते क्योंकि परीक्षा पास करने के हिसाब से यह पढाई का विषय ही नहीं बना है मैंने जितना भी पढ़ा है, लगता है के भगत सिंह को लोगों तक पहुंचाने से पहले खुद तक पहुंचाना जरुरी है यह विषय व्यापक चर्चा की मांग करता है लोग कहतें हैं कि भगतसिंह ने नास्तिकता पर “मैं नास्तिक क्यों हूँ ” निबंध बहुत अच्छा लिखा है और इसी कारण मैं धर्म को नहीं मानता हाय रे अंध भक्ति मुझे लगता है कि इसके पीछे उनकी भावना थी कि लोग उनके विचारों को जाने और विस्तृत अध्यन-मनन करें और स्वयं निष्कर्ष निकाले उनके इसी निबंध की एक पंक्ति “अध्यन की पुकार मेरे मन के गलियारों में गूंज रही थी”, अब मेरे मन में भी गूंज रही है भगत सिंह ने कहा है कि विरोधियों द्वारा रखे गये तर्कों का सामना करने के लिए अध्यन करो, अपने मत के समर्थन में तर्क देने के लिए पढ़ो प्रत्येक मनुष्य को विकास के लिए प्रचलित रुढियों-विश्वासों को तर्क की कसौटी पर कसना होगा अंध विश्वास नहीं तर्क के बाद सिद्धांत अथवा दर्शन का विश्वास करना होगा भगतसिंह पर अध्यन कर आपस में उस अध्यन को बांटना भी होगा भगतसिंह विचार मंच की यह परिचर्चा गोष्ठियां इसमें काफी सहायक हो सकती है अपने व्यक्तव्य के अंत में उन्होंने सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता के अंश का पाठ किया - “ऐसा क्यों होता है ? / कि धर्मग्रन्थ छूकर भी / किसी आदमी के हाथ / जंगली जानवर के पंजे में बदल जाते हैं / जहरीले नाखून से वह / इंसान की सूरत नोचने लगता है / और ईश्वर का नाम लेते ही / जीभ लपलपाने लगती है / xxx/ मत्रों और आयतों की जगह / दहाड़ सुनाई देती है
आभार व्यक्तव्य के बाद परिचर्चा समाप्त हुई
केशव भट्टर
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