पिछड़े मुसलमानों की उन्नति के लिए वाममोर्चा - मोहम्मद सलीम
रंगनाथ मिश्रा कमिशन की रिपोर्ट के परिप्रेक्ष्य में वाममोर्चा संचालित पश्चिम बंगाल सरकार ने राज्य के मुसलमानों के मध्य जो पिछड़े हुए हैं उनके लिए नौकरियों में आरक्षण की ऐतिहासिक निति की घोषणा की है. इस को लेकर अभी बहुत लोग नानाप्रकार की बातें कहेंगे. कुछ राजनितिक दल , कुछ समाचार माध्यम इस निति को ‘वोट के लिए धार्मिक आधार पर आरक्षण का प्रयास’ कहकर प्रचारित करेंगे. किन्तु एक बात स्पष्ट जान लेनी होगी, मुसलमानों के लिए धार्मिक आधार पर आरक्षण की बात वामपंथियों ने कभी नहीं की, अभी भी नहीं कर रहें है. कारण इसको हम बुजरुकी ही मानते हैं. तृणमूल कांग्रेस जैसे कुछ दल ही केवल ऐसी बुजरुकी कर सकते हैं, वामपंथी नहीं.
शुरुआत से देखें. वामपंथी बराबर ही समाज के सब अंशो और सब क्षेत्रों में असमानता दूर करने की जिस संपूर्ण कर्मसुची के लिए विचार करते रहें है, उसी की एक कड़ी के रूप में रंगनाथ मिश्रा कमिशन को देखते हैं. वर्ष 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व में यू पि ए सरकार जब सत्ता में आयी तब न्यूनतम कार्यसुची के आधार पर वामपंथियों ने उसका समर्थन किया. वामपंथियों के समर्थन और दबाव के चलते इस न्यूनतम कार्यसूची में राजनितिक, आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े लोग, पिछड़े अंचल और क्षेत्रों की उन्नति के लिए विशेष जोर दिया गया, विशेष बराद्देर (सहायता) की बात हुई. वर्ष 2009 तक वामपंथियों ने यूपीए सरकार पर समर्थन का दबाव देकर ऐसे अनेक क्षेत्रों में कुछ कार्य करवाने में सफलता प्राप्त की. आदिवासिओं को वनांचल के पट्टे प्रदान करना, ग्रामीण कर्म संस्थान, पिछड़े इलाकों की उन्नति के लिए विशेष तहबिल का गठन, पिछड़े पड़े उत्तर-पूर्वांचल के लिए विशेष प्रकल्प, महिलाओं के लिए विशेष प्रकल्प इत्यादि अनेक उदहारण दिए जा सकते हैं. सीधी सी बात है, सामाजिक असमानता दूर करके न्याय के सुयोग को सम्प्रसारित करने के लिए वामपंथियों के दबाव में एक कार्य लक्ष्य निश्चित किया गया. इसी की एक कड़ी थी रंगनाथ मिश्र आयोग का गठन. बीजेपी, तृणमूल गठजोड़ वाली एन डी ए सरकार के पतन के बाद सांप्रदायिक दंगे रोकने के उद्धेश्य के साथ साथ पिछड़े हुए अल्पसंख्यकों की उन्नति के लिए एक कार्यकारी व्यवस्था गृहण करना ज़रुरी हो गया था. ध्यान दें की प्रथम यू पि ए सरकार की साधारण न्यूनतम कार्य सुची में लिखा हुआ था- The UPA will establish a national commission to see how best the welfare of socially and economically backward sections among religious and linguistic minorities, including reservations in education and employment, is enhanced. इसी परिप्रेक्ष्य में रंगनाथ मिश्र आयोग को देखना होगा, और याद रखना होगा , कुछ लोगों द्वारा सहमति देकर भूल जाने के बाद भी वामपंथियों ने इसे भुलाया नहीं है.
वर्ष 2004 के अक्टूबर महीने में ‘नॅशनल कमिशन फॉर रिलिजिअस एंड लिंगुइस्टिक माइनोरिटी’ का गठन हुआ. यही रंगनाथ मिश्र आयोग है. स्वतंत्र भारत का यह पहला आयोग था जिसके विचारार्थ विषय रखे गए- (1) धार्मिक और भाषाई अल्पसंखकों के बीच सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से पिछड़े अंश को चिन्हित करने के लिए एक पैमाने की खोज करना (2) उनके कल्याण के लिए शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण के अलावा उठाये जाने योग्य अन्य क़दमों की सिफारिश करना (3) इसके लिए उठाये जाने योग्य संवैधानिक, क़ानूनी और प्रशाशनिक कदमों की सिफारिश करना. अर्थात भारत सरकार ने शुरुआत में ही अल्पसंख्यकों के बीच पिछड़ों के लिए आरक्षण के विषय की विवेचना करने के लिए और इसके लिए संवैधानिक, क़ानूनी और प्रशाशनिक स्तर पर परिवर्तन करने योग्य कदमों की सिफारिश करने के लिए आयोग से कह दिया था.
वर्ष 2007 की मई में आयोग ने अपनी रिपोर्ट केन्द्रीय सरकार के सुपुर्द की. पर उसके बाद क्या हुआ ? अढ़ाई वर्षों तक कांग्रेस नेतृत्व ख़ामोश बैठा रहा. इस रिपोर्ट को प्रकाशित करने के लिए वामपंथियों सहित दूसरे धर्मनिरपेक्ष दल, अल्पसंख्यकों के संगठन लगातार आवाज़ उठाते रहे. यू पि ए सरकार को समर्थन जारी रखने के दौरान और समर्थन वापस लेने के बाद भी सांसद के बाहर और भीतर वामपंथीयों ने इस आवाज को उठाया. किन्तु केंद्रीय सरकार तब अन्य कार्यों में व्यस्त रही. महंगाई और दूसरे अन्य महत्वपूर्ण विषयों को जब भी प्रधान मंत्री के समक्ष उठाया गया , उन्होंने बताया की भारत अमेरिका परमाणु संधि को लेकर वें व्यस्त हैं. हो सकता है इसी कारण से केंद्रीय सरकार आयोग की रिपोर्ट पर ठीक ढंग से नज़र नहीं डाल सकी. बड़े दुःख की बात है, परमाणु संधि हो जाने के बाद ‘कैश फॉर वोट‘ कांड को अंजाम देकर सरकार बचाने के बाद भी उन्होंने रंगनाथ मिश्र कमिशन को अनदेखा किया. विभिन्न दबावों के चलते अंत में पिछले साल दिसंबर में आयोग की रिपोर्ट प्रकाशित हो सकी.
वर्ष 2004 में जब रंगनाथ मिश्र कमिशन का गठन हुआ तब एन डी ए इसके विरोध में था.हमारे राज्य की तृणमूल कांग्रेस तब एन डी ए के साथ थी. बाद में जब ये यू पी ए में शामिल हुई तब भी रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट प्रकाशित करने के लिए कुछ न कहकर चुप चाप बैठे रहे. कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस का यह आचरण नया नहीं है. अतीत में वर्ष 1984 में गोपाल सिंह कमिटी की रिपोर्ट में भी अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण की सिफारिश की गयी थी. किन्तु उस रिपोर्ट पर कार्य करना तो दूर , इन्होने उसे प्रकाशित ही नहीं किया. उस समय तृणमूल कांग्रेस तो कांग्रेस में ही थी. सच्चर कमिटी पर इतनी बातें हैं, हल्ला गुल्ला न होने पर ये उसे प्रकाशित करते इसमें संदेह है. कांग्रेस के असहयोग के चलते आज तक सच्चर कमिटी की रिपोर्ट पर सांसद में चर्चा नहीं हुई. तृणमूल कांग्रेस के नेतानेत्री गोपाल सिंह कमिटी की सिफारिशों पर कभी भी कुछ नहीं बोलें , रंगनाथ मिश्रा कमिटी की रिपोर्ट पर भी खामोश रहे. हो सकता है की रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट पर यू पी ए सरकार के अंदर ही मतभेद रहे हों. कैबिनेट में भी वे कोई निति निर्धारण नहीं कर सके. यह बातें याद दिलाने का कारण है की रंगनाथ मिश्रा आयोग जैसे महत्वपूर्ण आयोग की रिपोर्ट यू पी ए सरकार ने सांसद में रखी जरुर, मगर बगैर किसी बयान के. साधारणतया सरकार इस तरह की रिपोर्ट पेश करते समय रिपोर्ट के साथ ‘रीजन फॉर एक्सेप्टेंस ऑर रिजेक्सन‘ भी पेश करती हैं. किन्तु इस मामले में सरकार ने ऐसा नहीं किया.यहाँ तक की अढ़ाई वर्षों की देरी के बाद भी सांसद में ‘रीजन फॉर डिले’ सम्बंधित कोई नोट भी नहीं रखा गया . संक्षेप में कहे तो सरकार के किसी भी व्यक्तव्य के बगैर रिपोर्ट पेश हुई.
हालाँकि रंगनाथ मिश्र आयोग का विराट महत्व है. सच्चर कमिटी भारत में मुसलमानों की सामाजिक, आर्थिक अवस्था बताती है. इस अवस्था में सुधार के लिए क्या कदम उठायें जाने चाहिए , यह रंगनाथ मिश्र आयोग बताता है. देखा जा सकता है कि केंद्रीय सरकार मुसलमानों कि स्थिति को लेकर बातचीत के लिए तो तैयार नहीं ही है, सिफारिशों पर चर्चा के लिए भी तैयार नहीं है. ऐसी स्थिति में आगे आकर गंभीरता और जिम्मेदारी दिखाना ही वाम्पन्थिओं का उद्धेश्य है.
रंगनाथ मिश्रा कमिशन की रिपोर्ट के परिप्रेक्ष्य में वाममोर्चा संचालित पश्चिम बंगाल सरकार ने राज्य के मुसलमानों के मध्य जो पिछड़े हुए हैं उनके लिए नौकरियों में आरक्षण की ऐतिहासिक निति की घोषणा की है. इस को लेकर अभी बहुत लोग नानाप्रकार की बातें कहेंगे. कुछ राजनितिक दल , कुछ समाचार माध्यम इस निति को ‘वोट के लिए धार्मिक आधार पर आरक्षण का प्रयास’ कहकर प्रचारित करेंगे. किन्तु एक बात स्पष्ट जान लेनी होगी, मुसलमानों के लिए धार्मिक आधार पर आरक्षण की बात वामपंथियों ने कभी नहीं की, अभी भी नहीं कर रहें है. कारण इसको हम बुजरुकी ही मानते हैं. तृणमूल कांग्रेस जैसे कुछ दल ही केवल ऐसी बुजरुकी कर सकते हैं, वामपंथी नहीं.
शुरुआत से देखें. वामपंथी बराबर ही समाज के सब अंशो और सब क्षेत्रों में असमानता दूर करने की जिस संपूर्ण कर्मसुची के लिए विचार करते रहें है, उसी की एक कड़ी के रूप में रंगनाथ मिश्रा कमिशन को देखते हैं. वर्ष 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व में यू पि ए सरकार जब सत्ता में आयी तब न्यूनतम कार्यसुची के आधार पर वामपंथियों ने उसका समर्थन किया. वामपंथियों के समर्थन और दबाव के चलते इस न्यूनतम कार्यसूची में राजनितिक, आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े लोग, पिछड़े अंचल और क्षेत्रों की उन्नति के लिए विशेष जोर दिया गया, विशेष बराद्देर (सहायता) की बात हुई. वर्ष 2009 तक वामपंथियों ने यूपीए सरकार पर समर्थन का दबाव देकर ऐसे अनेक क्षेत्रों में कुछ कार्य करवाने में सफलता प्राप्त की. आदिवासिओं को वनांचल के पट्टे प्रदान करना, ग्रामीण कर्म संस्थान, पिछड़े इलाकों की उन्नति के लिए विशेष तहबिल का गठन, पिछड़े पड़े उत्तर-पूर्वांचल के लिए विशेष प्रकल्प, महिलाओं के लिए विशेष प्रकल्प इत्यादि अनेक उदहारण दिए जा सकते हैं. सीधी सी बात है, सामाजिक असमानता दूर करके न्याय के सुयोग को सम्प्रसारित करने के लिए वामपंथियों के दबाव में एक कार्य लक्ष्य निश्चित किया गया. इसी की एक कड़ी थी रंगनाथ मिश्र आयोग का गठन. बीजेपी, तृणमूल गठजोड़ वाली एन डी ए सरकार के पतन के बाद सांप्रदायिक दंगे रोकने के उद्धेश्य के साथ साथ पिछड़े हुए अल्पसंख्यकों की उन्नति के लिए एक कार्यकारी व्यवस्था गृहण करना ज़रुरी हो गया था. ध्यान दें की प्रथम यू पि ए सरकार की साधारण न्यूनतम कार्य सुची में लिखा हुआ था- The UPA will establish a national commission to see how best the welfare of socially and economically backward sections among religious and linguistic minorities, including reservations in education and employment, is enhanced. इसी परिप्रेक्ष्य में रंगनाथ मिश्र आयोग को देखना होगा, और याद रखना होगा , कुछ लोगों द्वारा सहमति देकर भूल जाने के बाद भी वामपंथियों ने इसे भुलाया नहीं है.
वर्ष 2004 के अक्टूबर महीने में ‘नॅशनल कमिशन फॉर रिलिजिअस एंड लिंगुइस्टिक माइनोरिटी’ का गठन हुआ. यही रंगनाथ मिश्र आयोग है. स्वतंत्र भारत का यह पहला आयोग था जिसके विचारार्थ विषय रखे गए- (1) धार्मिक और भाषाई अल्पसंखकों के बीच सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से पिछड़े अंश को चिन्हित करने के लिए एक पैमाने की खोज करना (2) उनके कल्याण के लिए शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण के अलावा उठाये जाने योग्य अन्य क़दमों की सिफारिश करना (3) इसके लिए उठाये जाने योग्य संवैधानिक, क़ानूनी और प्रशाशनिक कदमों की सिफारिश करना. अर्थात भारत सरकार ने शुरुआत में ही अल्पसंख्यकों के बीच पिछड़ों के लिए आरक्षण के विषय की विवेचना करने के लिए और इसके लिए संवैधानिक, क़ानूनी और प्रशाशनिक स्तर पर परिवर्तन करने योग्य कदमों की सिफारिश करने के लिए आयोग से कह दिया था.
वर्ष 2007 की मई में आयोग ने अपनी रिपोर्ट केन्द्रीय सरकार के सुपुर्द की. पर उसके बाद क्या हुआ ? अढ़ाई वर्षों तक कांग्रेस नेतृत्व ख़ामोश बैठा रहा. इस रिपोर्ट को प्रकाशित करने के लिए वामपंथियों सहित दूसरे धर्मनिरपेक्ष दल, अल्पसंख्यकों के संगठन लगातार आवाज़ उठाते रहे. यू पि ए सरकार को समर्थन जारी रखने के दौरान और समर्थन वापस लेने के बाद भी सांसद के बाहर और भीतर वामपंथीयों ने इस आवाज को उठाया. किन्तु केंद्रीय सरकार तब अन्य कार्यों में व्यस्त रही. महंगाई और दूसरे अन्य महत्वपूर्ण विषयों को जब भी प्रधान मंत्री के समक्ष उठाया गया , उन्होंने बताया की भारत अमेरिका परमाणु संधि को लेकर वें व्यस्त हैं. हो सकता है इसी कारण से केंद्रीय सरकार आयोग की रिपोर्ट पर ठीक ढंग से नज़र नहीं डाल सकी. बड़े दुःख की बात है, परमाणु संधि हो जाने के बाद ‘कैश फॉर वोट‘ कांड को अंजाम देकर सरकार बचाने के बाद भी उन्होंने रंगनाथ मिश्र कमिशन को अनदेखा किया. विभिन्न दबावों के चलते अंत में पिछले साल दिसंबर में आयोग की रिपोर्ट प्रकाशित हो सकी.
वर्ष 2004 में जब रंगनाथ मिश्र कमिशन का गठन हुआ तब एन डी ए इसके विरोध में था.हमारे राज्य की तृणमूल कांग्रेस तब एन डी ए के साथ थी. बाद में जब ये यू पी ए में शामिल हुई तब भी रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट प्रकाशित करने के लिए कुछ न कहकर चुप चाप बैठे रहे. कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस का यह आचरण नया नहीं है. अतीत में वर्ष 1984 में गोपाल सिंह कमिटी की रिपोर्ट में भी अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण की सिफारिश की गयी थी. किन्तु उस रिपोर्ट पर कार्य करना तो दूर , इन्होने उसे प्रकाशित ही नहीं किया. उस समय तृणमूल कांग्रेस तो कांग्रेस में ही थी. सच्चर कमिटी पर इतनी बातें हैं, हल्ला गुल्ला न होने पर ये उसे प्रकाशित करते इसमें संदेह है. कांग्रेस के असहयोग के चलते आज तक सच्चर कमिटी की रिपोर्ट पर सांसद में चर्चा नहीं हुई. तृणमूल कांग्रेस के नेतानेत्री गोपाल सिंह कमिटी की सिफारिशों पर कभी भी कुछ नहीं बोलें , रंगनाथ मिश्रा कमिटी की रिपोर्ट पर भी खामोश रहे. हो सकता है की रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट पर यू पी ए सरकार के अंदर ही मतभेद रहे हों. कैबिनेट में भी वे कोई निति निर्धारण नहीं कर सके. यह बातें याद दिलाने का कारण है की रंगनाथ मिश्रा आयोग जैसे महत्वपूर्ण आयोग की रिपोर्ट यू पी ए सरकार ने सांसद में रखी जरुर, मगर बगैर किसी बयान के. साधारणतया सरकार इस तरह की रिपोर्ट पेश करते समय रिपोर्ट के साथ ‘रीजन फॉर एक्सेप्टेंस ऑर रिजेक्सन‘ भी पेश करती हैं. किन्तु इस मामले में सरकार ने ऐसा नहीं किया.यहाँ तक की अढ़ाई वर्षों की देरी के बाद भी सांसद में ‘रीजन फॉर डिले’ सम्बंधित कोई नोट भी नहीं रखा गया . संक्षेप में कहे तो सरकार के किसी भी व्यक्तव्य के बगैर रिपोर्ट पेश हुई.
हालाँकि रंगनाथ मिश्र आयोग का विराट महत्व है. सच्चर कमिटी भारत में मुसलमानों की सामाजिक, आर्थिक अवस्था बताती है. इस अवस्था में सुधार के लिए क्या कदम उठायें जाने चाहिए , यह रंगनाथ मिश्र आयोग बताता है. देखा जा सकता है कि केंद्रीय सरकार मुसलमानों कि स्थिति को लेकर बातचीत के लिए तो तैयार नहीं ही है, सिफारिशों पर चर्चा के लिए भी तैयार नहीं है. ऐसी स्थिति में आगे आकर गंभीरता और जिम्मेदारी दिखाना ही वाम्पन्थिओं का उद्धेश्य है.
रंगनाथ मिश्र आयोग कि रिपोर्ट मिलने के बाद वाम्पन्थियों ने जरा सी भी देर नहीं कि. रिपोर्ट आने के दस दिन के अंदर सी.पी.आई.(एम.) पोलित ब्यूरो ने आयोग कि रिपोर्ट का स्वागत किया. गत ३० दिसंबर को मिलन मेला में मुख्य मंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने भी उसी सुर में कमिशन कि सिफारिशों का स्वागत किया. उसके बाद कोलकाता में सी.पी.आई.(एम.) कि राज्य कमिटी कि बैठक में, केंद्रीय कमिटी कि बैठक में आलोचना के बाद केंद्रीय सरकार के पास रंगनाथ मिश्र कमिशन कि सिफारिशों को लागु करने कि आवाज़ उठाई गयी.८ फ़रवरी कि सुबह वामफ्रंट कि बैठक में कमिशन कि रिपोर्ट का समर्थन करते हुए राज्य सरकार को उचित कदम उठाने के लिए कहा गया. सभी जानते हैं कि वामफ्रंट सरकार ने तीव्र गति से कदम उठायें. इस महत्वपूर्ण विषय पर राज्य सरकार ने एक पल कि भी टाल मटोल नहीं कि. मुख्यमंत्री ने आयोग कि सिफारिश मुताबिक कदम उठाने कि घोषणा कर दी. बहुतेरे लोग कुप्रचार कर रहे हैं कि यह कदम धार्मिक आधार पर मुसलमानों को आरक्षण दिये जाने का प्रयास है. हकीकत में ऐसा नहीं है. यह सच है कि भारत में इतने दिनों से जाति धर्म और आरक्षण व्यवस्था आपस में जुडी रही है. रंगनाथ मिश्र आयोग का महत्व और आशय यही है कि उन्होंने इस सारे व्यापार को रेखांकित करते हुए इस विषय को स्पष्ट कर दिया. धार्मिक आधार पर जिस तरह आरक्षण ठीक नहीं है, उसी तरह धर्म के नाम पर किसी समुदाय को आरक्षण से वंचित कर देना भी ठीक नहीं है. रंगनाथ मिश्र आयोग ने इस विषय को सतह पर ला दिया. इसी कारण से वामपंथियों ने आयोग कि रिपोर्ट को सहज और तीव्र समर्थन दिया. भारत के संविधान में आरक्षण के साथ धर्म कि कोई जुगलबंदी नहीं है. किन्तु बाद में राजनितिक कारणों से आरक्षण को धार्मिक दृष्टि से देखा गया. वर्ष १९५० के संविधानिक निर्देशानुसार केवल हिंदुओं में पिछड़े अंशो को पिछड़ी जाति के हिसाब से स्वीकृति दी गयी. यह कदम एक ऐतिहासिक भूल था. बाद में इसमें सिक्खों को जोड़ा गया. वी पी सिंह सरकार के समय धार्मिक आधार पर आरक्षण हटाने कि मांग उठने पर इसमें बोद्धों को भी जोड़ा गया. पहली बार रंगनाथ मिश्र आयोग ने पिछडो को चिन्हित करने में धार्मिक पैमाना छोड़ कर सभी धर्मों के क्षेत्र में विवेचना करने के लिए कहा. अर्थात हिंदू धर्म के पिछड़े अंश जैसे पिछड़ी जातियों कि सुविधा प्राप्त करते हैं, मुस्लिम या अन्य धर्मों के पिछड़े अंश को भी वैसी सुविधा देने कि बात कही गयी है. धर्म के आधार पर सुविधाएँ देना या वंचित करना दोनों का ही विरोध किया गया है. यहाँ संविधान के प्रणेता आंबेडकर का व्यक्तव्य याद किया जा सकता है, उन्होंने कहा था, धर्म मनुष्य कि उपासना पद्धति को ठीक कर सकता है, किन्तु वह उसकी सामाजिक स्थति को बदल नहीं सकता. इसी कारण से हमारा भी व्यक्तव्य है कि कौन किस पद्धति से उपासना करता है इसको लेकर माथा दुखाना ठीक नहीं, उनकी सामाजिक,आर्थिक अवस्था कि विवेचना कर उन्हें आरक्षण कि सुविधा दीजिए.
हमारे राज्य के मुख्यमंत्री ने जो घोषणा कि है उसका मूल स्वर यही है. केवल धर्म के नाम पर किसी को आरक्षण कि सुविधा नहीं मिलेंगी. मंडल आयोग कि सिफारिशों के आधार पर हिंदू संप्रदाय कि पिछड़ी जातियों को ओ.बी.सी के रूप में चिन्हित किया गया. इसी हिसाब से मुसलमानों में पिछड़ी जातियों को चिन्हित कर ऐसी सुविधाएँ दी जा सकती हैं.
हालाँकि परंपरगत तरीकों से पिछडों को इस प्रकार चिन्हित करने में कुछ समस्याएं हैं. रोज़गार और अन्यान्य सामाजिक पैमानों को मिलाकर पिछड़े मुसलमानों को चिन्हित करना होगा. मुख्यमंत्री ने इसी लक्ष्य को लेकर घोषणा कि है. मुसलमानों में जो सक्षम है, शिक्षा और सम्पति में आगे हैं निश्चित रूप से उनकी मनोभावना कुछ और रही है, वो चाहतें थे की धर्म के आधार पर आरक्षण हो. सभी मुसलमानों को आरक्षण की सुविधा मिलें. मुल्ला मौलविओं का भी यही दावा था, सभी मुसलमानों को आरक्षण. किन्तु इससे क्या सचमुच साधारण बहुसंख्यक गरीब मुसलमानों को लाभ होगा ? आरक्षण यदि सब मुसलमानों के लिए हो तो उसकी सुविधा किसे मिलेगी ? तब गरीब पिछडें मुसलमानों के बदले अगडे सामाजिक क्षमतासंपन्न मुसलमान ही इस सुविधा का लाभ ले जायेंगे. वाम फ्रंट सरकार ऐसा नहीं चाहती, वामफ्रंट सरकार चाहती है प्रांतीय लोगों के लिए सुविधा व्यवस्था कर दी जाय. संविधान भी कहता है कि धर्म के आधार पर नहीं, पिछड़े अंशों के लिए आरक्षण दिया जाय. ओ बी सी चिन्हित करने के समय मंडल कमिशन के समक्ष सी पि आई (एम) कि तरफ से ज्योतिर्मय बोस ने ज्ञापन देकर कहा था, सिर्फ जाति के आधार पर विचार न करके जाति के साथ आर्थिक अवस्था के परिप्रेक्ष्य में विचार करके ओ बी सी को चिन्हित किया जाए. सी पि आई (एम) का बराबर यही नजरिया रहा है. बाद में सी पि आई (एम) के इस नज़रिए को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश से भी समर्थन मिला. सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश देकर कहा कि ओ बी सी को मिली आरक्षण सुविधा से क्रीमीलेयर को बाहर रखा जाय. अल्पसंख्यकों के मध्य पिछड़ों के लिए नौकरियों में १० प्रतिशत आरक्षण करते समय पश्चिम बंगाल सरकार ने भी इस क्रीमीलेयर को बाहर रखने कि व्यवस्था रखी है. इसीलिए मुख्यमंत्री ने सलाना साढ़े चार लाख रुपये से अधिक आय वाले अल्पसंख्यकों को आरक्षण कि सुविधा से बाद देने कि घोषणा कि है. कुछ को इसमें भी आपत्ति है. वें चाहतें हैं कि किसी को भी बाद न देकर सभी मुसलमानों को आरक्षण कि सुविधा मिलें. किन्तु रंगनाथ कमिशन के गठन के समय निश्चित किये गए ‘टर्म्स ऑफ रेफ़रेंस’ या विचारार्थ विषय कि तरफ मुड़कर देखने से इस बात की नासमझी सपष्ट हो जायेगी. वहाँ स्पष्ट कहा गया है, सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछडें अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण की पद्दति को लेकर सिफारिश करें. अर्थात सारे अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण की बात रंगनाथ कमिशन के विचारार्थ विषय ही नहीं था. पश्चिम बंग सरकार ने भी सभी अल्पसंख्यकों के लिए नहीं, उनमे पिछड़े अंश की छंटाई करने के लिए ही एक आर्थिक आधार निश्चित किया है. वामफ्रंट सरकार ने धार्मिक नज़रिए के बदले वर्गीय नज़रिए को ही महत्व दिया है. कुप्रचार जितना भी हो, अल्पसंख्यकों सहित राज्य के सभी मनुष्यों को इस सत्य से अवगत कराना ही होगा.
हमारे राज्य के मुख्यमंत्री ने जो घोषणा कि है उसका मूल स्वर यही है. केवल धर्म के नाम पर किसी को आरक्षण कि सुविधा नहीं मिलेंगी. मंडल आयोग कि सिफारिशों के आधार पर हिंदू संप्रदाय कि पिछड़ी जातियों को ओ.बी.सी के रूप में चिन्हित किया गया. इसी हिसाब से मुसलमानों में पिछड़ी जातियों को चिन्हित कर ऐसी सुविधाएँ दी जा सकती हैं.
हालाँकि परंपरगत तरीकों से पिछडों को इस प्रकार चिन्हित करने में कुछ समस्याएं हैं. रोज़गार और अन्यान्य सामाजिक पैमानों को मिलाकर पिछड़े मुसलमानों को चिन्हित करना होगा. मुख्यमंत्री ने इसी लक्ष्य को लेकर घोषणा कि है. मुसलमानों में जो सक्षम है, शिक्षा और सम्पति में आगे हैं निश्चित रूप से उनकी मनोभावना कुछ और रही है, वो चाहतें थे की धर्म के आधार पर आरक्षण हो. सभी मुसलमानों को आरक्षण की सुविधा मिलें. मुल्ला मौलविओं का भी यही दावा था, सभी मुसलमानों को आरक्षण. किन्तु इससे क्या सचमुच साधारण बहुसंख्यक गरीब मुसलमानों को लाभ होगा ? आरक्षण यदि सब मुसलमानों के लिए हो तो उसकी सुविधा किसे मिलेगी ? तब गरीब पिछडें मुसलमानों के बदले अगडे सामाजिक क्षमतासंपन्न मुसलमान ही इस सुविधा का लाभ ले जायेंगे. वाम फ्रंट सरकार ऐसा नहीं चाहती, वामफ्रंट सरकार चाहती है प्रांतीय लोगों के लिए सुविधा व्यवस्था कर दी जाय. संविधान भी कहता है कि धर्म के आधार पर नहीं, पिछड़े अंशों के लिए आरक्षण दिया जाय. ओ बी सी चिन्हित करने के समय मंडल कमिशन के समक्ष सी पि आई (एम) कि तरफ से ज्योतिर्मय बोस ने ज्ञापन देकर कहा था, सिर्फ जाति के आधार पर विचार न करके जाति के साथ आर्थिक अवस्था के परिप्रेक्ष्य में विचार करके ओ बी सी को चिन्हित किया जाए. सी पि आई (एम) का बराबर यही नजरिया रहा है. बाद में सी पि आई (एम) के इस नज़रिए को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश से भी समर्थन मिला. सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश देकर कहा कि ओ बी सी को मिली आरक्षण सुविधा से क्रीमीलेयर को बाहर रखा जाय. अल्पसंख्यकों के मध्य पिछड़ों के लिए नौकरियों में १० प्रतिशत आरक्षण करते समय पश्चिम बंगाल सरकार ने भी इस क्रीमीलेयर को बाहर रखने कि व्यवस्था रखी है. इसीलिए मुख्यमंत्री ने सलाना साढ़े चार लाख रुपये से अधिक आय वाले अल्पसंख्यकों को आरक्षण कि सुविधा से बाद देने कि घोषणा कि है. कुछ को इसमें भी आपत्ति है. वें चाहतें हैं कि किसी को भी बाद न देकर सभी मुसलमानों को आरक्षण कि सुविधा मिलें. किन्तु रंगनाथ कमिशन के गठन के समय निश्चित किये गए ‘टर्म्स ऑफ रेफ़रेंस’ या विचारार्थ विषय कि तरफ मुड़कर देखने से इस बात की नासमझी सपष्ट हो जायेगी. वहाँ स्पष्ट कहा गया है, सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछडें अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण की पद्दति को लेकर सिफारिश करें. अर्थात सारे अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण की बात रंगनाथ कमिशन के विचारार्थ विषय ही नहीं था. पश्चिम बंग सरकार ने भी सभी अल्पसंख्यकों के लिए नहीं, उनमे पिछड़े अंश की छंटाई करने के लिए ही एक आर्थिक आधार निश्चित किया है. वामफ्रंट सरकार ने धार्मिक नज़रिए के बदले वर्गीय नज़रिए को ही महत्व दिया है. कुप्रचार जितना भी हो, अल्पसंख्यकों सहित राज्य के सभी मनुष्यों को इस सत्य से अवगत कराना ही होगा.
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
Swagat hai!
ReplyDelete