Sunday, November 28, 2010

स्वतंत्रता आंदोलन और मारवाड़ी व्यापारी
- केशव भट्टड़
स्वतंत्रता की भावना संस्कृति से ही प्रसारित होती है ‘पराधीन सपनेहूँ सुख नाहीं’- इस भावना के मूल में देश प्रेम की भावना कार्य करती है जिसका आधार मज़बूत सांस्कृतिक धरोहर होती है मारवाड़ी व्यापारी भी देशप्रेम की इस पवित्र भावना से अछूते नहीं थे और राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में इनकी प्रत्यक्ष और परोक्ष मगर महत्वपूर्ण भूमिका रही भारत के राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में मारवाड़ी व्यापारियों की भूमिका पर हिंदी और संविधान सम्मत अन्य भाषाओँ में कार्य नहीं के बराबर हुआ है संविधानिक सहमति के आभाव में राजस्थानी भाषा का अन्य भाषाओँ से परिचय विकास अत्यंत धीमी गति से हो रहा है परिणामस्वरूप मारवाड़ियों या राजास्थानियों के महत्वपूर्ण कार्यों का लेखा जोखा स्थानीय और प्रादेशिक स्तर तक सिमित रह जाता है मारवाड़ियों के बारे में प्रदेश में प्रचलित धारणा कि ये सिर्फ व्यापारी हैं, एक भ्रान्ति के अलावा कुछ नहीं संस्कृति, साहित्य और राष्ट्रीयता के उत्थान में मारवाड़ी व्यापारियों का तन-मन-धन का भरपूर सहयोग रहा कोलकाता के राजस्थानी कवि और शायर चम्पालाल मोहता ’अनोखा’ के अभिनन्दन पर वरिष्ठ कवि श्री ध्रुवदेव मिश्र ‘पाषाण’ ने मारवाड़ी समाज का साहित्य और संस्कृति के विकास में अहम योगदान स्वीकार करते हुए अध्यक्षीय व्यक्तव्य में कहा कि राजस्थानी समाज देश का कवच और अस्त्र है वर्तमान में यह याद करना समीचीन होगा कि भारत के राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में मारवाड़ी व्यापारी वर्ग की क्या भूमिका रही ?

उन्नीसवीं शताब्दी में राजस्थान के मारवाड़ी व्यापारी पूरे अंग्रेजी भारत, दक्षिण और मध्य भारत में अपना कारोबार फैला चुके थे इस समय तक सामान्य रूप से इस वर्ग का अंग्रेज सरकार या अंग्रेज व्यापारियों की नीति से कोई मतभेद नहीं था, परन्तु जो व्यापारी अंतिम मुग़ल सम्राट बहादुरशाह ‘जफ़र’ और मध्य भारत की देशी रियासतों के शाषकों के संपर्क में थे उनका अंग्रेज सरकार से मोह भंग होने लगा था सन 1857 तक यह रोष बढ़ गया देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम में इन व्यापारियों ने अपनी जान माल की परवाह किये बगैर स्वतंत्रता सेनानियों की मदद की यह मदद मुख्य रूप से आंदोलन के लिए धन देकर की गई थी इस आर्थिक मदद से अंग्रेज सरकार इतनी घबरा गई कि इन व्यापारियों को मौत के घाट उतारना शुरू कर दिया सन 1857 में ग्वालियर राज्य का खजाना वहाँ के नामचीन व्यापारी सेठ अमरचंद बांठिया की देख रेख में था सेठ बांठिया मूल रूप से बीकानेर रियासत का मारवाड़ी व्यापारी था जब ग्वालियर पर रानी लक्ष्मी बाई , नाना साहेब और तांत्या टोपे का हमला हुआ तब सेठ बांठिया ने ग्वालियर का खज़ाना इनकी सेना के खर्च पूर्ति हेतु इन्हें ही सौंप दिया अंग्रेज सरकार ने इस घटना को राजद्रोह मानकर सेठ अमरचंद बांठिया’ बीकानेर वाला’ को फांसी पर चढा दिया दिल्ली में मुग़ल बादशाह बहादुरशाह ‘जफ़र’ की खुल्लमखुल्ला आर्थिक मदद करने वाले मारवाड़ी व्यापारी रामजीदास गुड़वाला का खजाना जब्त कर अंग्रेजो ने उन्हें भी फांसी पर लटका दिया इसी तरह जब तांत्या टोपे भागकर जयपुर से लालसोट होते हुए सीकर पहुंचे, सेठ रामप्रकाश अग्रवाल ने गहने और धन देकर उनकी मदद की शोलापुर के कृष्णदास सारडा और सतारा के सेठ सेवाराम मोर भी अपनी उग्र कारवाइयों के चलते फांसी पर झूला दिए गये 1857 के क्रांतिकारियों के बीच समनव्यय का कार्य मारवाड़ी व्यापारियों ने किया सन्देश-समाचार पहुंचाना, सन्देश वाहकों को अपने घर में आश्रय देना, क्रांतिकारियों और उनके रिश्तेदारों को अपने यहाँ छुपाकर रखना आदि अनेक कार्य मारवाड़ी व्यापारियों द्वारा किये जाते रहे 1857 की क्रांति की असफलता के बाद नाना साहब पेशवा का भतीजा मार्च 1862 में दक्षिण भारत के हैदराबाद में सेठ मोहन लाल पित्ती और सेठ शरण मल के यहाँ गुप्त रूप से रह रहा था पता चलने पर अंग्रेज सरकार ने दोनों पर भारी जुर्माना ठोक कर उन्हें सजा दी
सन 1857 की क्रांति के बाद से सन 1900 तक मारवाड़ी व्यापारियों और अंग्रेजों में सीधा टकराव नहीं हुआ विद्रोह के बाद दोनों पक्ष अपनी अपनी स्थिति सुदृढ़ करने में लगे हुए थे इस समय तक प्रशाष्निक सुधारों के नाम पर देश की लगभग सभी रियासतों में परंपरागत कानून की जगह अंग्रेजी कानून लागू हो चूका था इसका असर दूसरे वर्गों के साथ साथ व्यापारी वर्ग के परंपरागत विशेषाधिकारों पर भी पड़ा इस कारण रियासतों के व्यापारी और उनके प्रवासी भाई-बंधू , दोनों में अंग्रेजों के प्रति कटुता बढती गई उदयपुर राज्य के लगभग 2000 व्यापारी 30 मार्च 1864 को नगरसेठ चम्पालाल के नेतृत्व में कर्नल ईडन के घर विरोध प्रदर्शन के लिए पहुंचे और सात दिनों की हड़ताल के बाद समझौता हुआ कालांतर में मारवाड़ी व्यापारी अंग्रेज व्यापारियों के एकाधिकार को हर जगह चुनौती देने लगे शीघ्र ही मारवाड़ी व्यापारिओं की समझ में आ गया की राजनितिक दबाव और समर्थन के बगैर केंद्रीय सत्ता से जुड़े अंग्रेज व्यापारियों से व्यावसायिक टक्कर लेना मुश्किल है अंतः 1898 में बंगाल के मारवाड़ी व्यापारियों ने ‘मारवाड़ी एसोसियेशन’ नाम की संस्था बनायीं इस संस्था की स्थापना के साथ उनकी घोषणा थी-‘ राजनीति का सम्बन्ध व्यापार से रहता है और यह प्रत्यक्ष रूप से व्यापार को प्रभावित करती है, इसलिए ‘मारवाड़ी एसोसियेशन’ भारत की राजनीति से परहेज़ नहीं रखेगी’ इसके साथ ही मारवाड़ियों से सम्बंधित पत्र-पत्रिकाओं में , जिसमे ‘मारवाड़ी’ और ‘अग्रवाल’ पत्रिकाएं उल्लेखनीय है, मारवाड़ी व्यापारियों से राजनीति में सक्रिय योगदान का आह्वान किया गया देखते ही देखते ‘मारवाड़ी एसोसियेशन’, ‘वैश्य सभा’ और ‘बुद्धिवर्धिनी सभा’ के माध्यम से सैकड़ों प्रगतिशील मारवाड़ी युवक तत्कालीन भारतीय राजनीति में रूचि लेने लगे

‘मारवाड़ी एसोसियेशन’, ‘वैश्य सभा’ और ‘बुद्धिवर्धिनी सभा’ के माध्यम से सैकड़ों प्रगतिशील मारवाड़ी युवक तत्कालीन भारतीय राजनीति में रूचि लेने लगे थे सन 1905 के आते-आते ये मारवाड़ी युवा राष्ट्र की मुख्य धारा से जुड़ने शुरू हो गये बंग भंग के विरोध में बंगाल के जन आंदोलन में, विरोध सभाओं में और बाद में बंगाल के क्रन्तिकारी आंदोलन में ये युवक सक्रिय भूमिकाओं में नज़र आने लगे बंगाल के मारवाड़ी व्यापारियों ने इंग्लैण्ड स्थित मैंनचेस्टर के ‘चेंबर ऑफ कामर्स’ से अनुरोध किया की वे ब्रिटिश सरकार पर दबाव डालें और बंग भंग को रुकवाने में मदद करें विदेशी माल के बहिष्कार आंदोलन को मारवाड़ी व्यापारियों के सहयोग से बल मिला सितम्बर 1904 में बंगाल में जहाँ 77000 रुपये का विदेशी कपडा बिका वहीँ सितम्बर 1905 में मात्र 10000 रुपये का 21 अक्टूबर 1905 को ‘भारतमित्र’ में ‘बंगविच्छेद’ शीर्षक लेख में लार्ड कर्जन को उग्र मुद्रा में बाल मुकुन्द गुप्त ने संबोधित किया, ‘आपके शाषन काल में बंगाविच्छेद इस देश के लिए अंतिम विषाद और आपके लिए अंतिम हर्ष है......दुर्बल की अंग्रेज नहीं सुनते” मारवाड़ियों में आक्रोश की लहर उठी ‘जणनी जने तो दोय जण, के दाता के सूर’ की परंपरा के मारवाड़ी युवा हनुमान प्रसाद पोद्दार ‘स्वदेश बांधव’ और ‘अनुशीलन समिति’ जैसी क्रन्तिकारी संस्थाओं के सक्रिय सदस्य बने रामगोपाल नेवटिया ने ‘देशपरक’ मासिक पत्रिका निकाली और उसके माध्यम से क्रांतिकारियों-साहित्यकारों को प्रोत्साहित किया, समर्थन दिया बसंतलाल मुरारका ने शरत चंद्र बोस को एक लाख ग्यारह हज़ार रुपयों की मदद दी ओंकारलाल सर्राफ का क्रन्तिकारी आशुतोष लाहिड़ी और प्रभुदयाल हिम्मतसिंहका का क्रन्तिकारी अतुलनाथ से गहरा संपर्क था विजयसिंह नाहर ने बंगाल में अपनी उग्र राजनीति से बहुत नाम कमाया था सन 1913 में अंग्रेज सरकार ने मारवाड़ी युवकों को प्रेरणा देने वाली साहित्यिक संस्था ‘साहित्य संवर्द्धनी’ को प्रतिबंधित कर दिया सन 1914 में प्रसिद्ध ‘रोड़ा कांड’ में अनुशीलन समिति से जुड़े हुए फूलचंद चौधरी, ज्वालाप्रसाद कानोडिया, प्रभु दयाल हिम्मतसिंहका, घनश्यामदास बिडला, कन्हैयालाल चित्तलान्गिया, ओंकारमल सर्राफ, और हनुमानप्रसाद पोद्दार की गिरफ्तारी के वारंट जारी किये गये घनश्यामदास बिडला को छोड़ सभी को लंबी अवधी तक जेल में रखा गया ब्यावर के सेठ दामोदरदास राठी का बंगाल के क्रन्तिकारी अरविन्द घोष, रासबिहारी बोस और सचेतन गांगुली के साथ ही श्यामजीकृष्ण वर्मा, राजा महेंद्रप्रताप और राजस्थान के दूसरे क्रांतिकारियों से भी गहरा संपर्क रहा कलकत्ता और काशी के क्रांतिकारियों के सहयोग से राजस्थान में भी अर्जुनलाल सेठी के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने अपनी गतिविधियां बढ़ा ली थी उनको जयपुर के सेठ छोटेलाल और मोतीलाल ने काफी आर्थिक मदद की तब तक महात्मा गांधी का प्रवेश भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में नहीं हुआ था

सन 1915 में महात्मा गांधी के भारतीय राजनीति में पदार्पण के साथ ही मारवाड़ी व्यापारियों का झुकाव उनकी तरफ हुआ महात्मा गांधी की भावुक राजनीति ने मारवाड़ियों को आकर्षित किया सेठ जमनालाल बजाज इनमे अग्रणी थे एनी बेसेंट के होम रुल आंदोलन में सेठ फूलचंद चौधरी और सेठ कन्हैलाल चित्तलान्गीया गिरफ्तार हुए जलियांवाला बाग की घटना में मारवाड़ी युवक भी मारे गये थे उस समय तक कांग्रेस मारवाड़ियों का महत्व समझ चुकी थी इसलिए सन 1920 में जमना लाल बजाज को कांग्रेस पार्टी का कोषाध्यक्ष बना दिया गया कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में ‘तिलक स्वराज फंड’ में ज्यादा से ज्यादा कोष जमा करवाने का आव्हान महात्मा गांधी ने किया इसके जबाब में जमनालाल बजाज, आनंदीलाल पोद्दार, रामकृष्ण मोहता, घनश्यामदास बिडला, केशोराम पोद्दार, रामकृष्ण डालमिया और सुखलाल करनानी ने लाखों रुपये स्वराज फंड में जमा करवाए अकेले कलकत्ता के बडाबाजार से उस समय दस लाख रुपये एकत्रित हुए महात्मा गांधी के विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के आंदोलन का नेतृत्व जमनालाल बजाज और कृष्णदास जाजू ने किया शेखावटी के हर बड़े कसबे में घनश्याम दास बिडला ने खादी भण्डार खुलवा दिये थे जमनालाल बजाज, घनश्यामदास बिडला, कृष्णदास जाजू, सिद्धराज ढढा, ब्रजलाल बियानी दूसरे मारवाड़ी व्यापारियों के साथ खादी प्रचार-प्रसार, हरिजन उद्धार के कार्यक्रमों में महात्मा गांधी के सक्रिय सहयोगी रहे घनश्याम दास बिडला हरिजन-सेवक संघ के अध्यक्ष थे जमना लाल बजाज और सिद्धराज ढढा ने राजस्थान की रियासतों में घूम घूम कर खादी और हरिजन-उद्धार का बहुत प्रचार किया नमक सत्याग्रह में मारवाड़ियों ने खुलकर भाग लिया असहयोग आंदोलन की रीढ़ ही मारवाड़ी व्यापारी थे तत्कालीन बंगाल सरकार के अधिकारी ए. एच. गज़नवी ने वायसराय के प्रतिनिधि कनिंघम को 27 अगस्त 1930 को पत्र लिखा –“ महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से मारवाड़ियों को अलग कर दिया जाये तो 90 फीसदी आंदोलन यूं ही खत्म हो जायेगा ” अंग्रेज सरकार ने बंगाल के मारवाडी व्यापारियों को आन्दोलन से अलग करने के लिए राजस्थान की रियासतों के शाषकों पर दबाव दिया लेकिन लगभग सभी रियासतों ने इसमें अपनी असमर्थता जता दी उस समय मारवाड़ियों की संस्थाओं ने मारवाड़ियों से भारतीय राजनीति में और ज्यादा सक्रिय होने का आह्वान किया अखिल भारतीय माहेश्वरी सभा के सन 1931 में हुए 10 वें सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए सेठ बृजलाल बियानी ने आव्हान किया –‘ माहेश्वरी समाज ने आन्दोलनों में धन दिया,जेल भुगती लेकिन अब समय आ गया है की समाज का बच्चा-बच्चा देश पर बलिदान होने के लिए तैयार रहे” इसी तरह अखिल भारतीय मारवाड़ी सम्मेलन के भागलपुर में आयोजित चौथे सम्मेलन में स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने वाले मारवाड़ियों की प्रसंशा में प्रस्ताव पास किया गया सुभाष चंद्र बोस की ‘आजाद हिंद फौज’ को सहयोग करने के लिए सेठ भगवान दास बागला ने वर्मा में रंगून स्थित अपनी ‘नेशनल बेंक ऑफ इण्डिया’ ही सुभाष बाबु को सौंप दी सन 1942 के ‘करो या मरो’ आंदोलन में डॉ.राम मनोहर लोहिया और मगनलाल बागड़ी का योगदान अविष्मर्णीय है मालचंद हिसारिया और नेमीचंद आंचलिया गिरफ्तार हुए भारत छोड़ो आंदोलन में 483 मारवाड़ियों को सजा सुनाई गई राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान वैचारिक क्रांति में जो अखबार अपना योगदान दे रहे थे वे प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से मारवाड़ी व्यापारियों के आर्थिक सहयोग से ही निकाल रहे थे हिंद केसरी, हरिजन, कर्मवीर, प्रताप, लीडर,त्याग-भूमि, भारतमित्र आदि अखबार इसकी मिशाल हैं इस क्षेत्र में भागीरथ कानोडिया का योगदान महत्वपूर्ण है चिडावा के ताराचंद डालमिया और मंडावे के देव किशन सर्राफ का नाम इस क्षेत्र के किसानो कि समस्या समाधान हेतु संघर्ष में अग्रणी है सीकर के किसानो की समस्याओं का समाधान करने के लिए सीताराम सेक्सरिया ने जमना लाल बजाज के साथ मिलकर सफल परिश्रम किया अन्य राज्यों के किसान आंदोलनों को आर्थिक सहयोग देने में भी मारवाड़ी व्यापारी पीछे नहीं रहे
मारवाड़ियों के गृह राज्य-रियासतों की राजनीति सामंतो और शाषकों के अधीन थी मारवाड़ी व्यापारियों ने रियासतों के प्रमुखों के साथ मिलकर जनता को राजनितिक अधिकार दिलाने के लिए सन 1927 में ‘अखिल भारतीय राज्य प्रजा-परिषद’ की स्थापना की बाद में इसी संस्था के प्रयासों से रियासतों में प्रजा-मंडल और प्रजा-परिषदों का गठन हुआ इनके आंदोलनों में अन्य लोगों के साथ हीरालाल कोठारी, शोभालाल गेलडा, परसराम भी सक्रिय रहे बीकानेर में सन 1907 से मारवाड़ी व्यापारी गोपाल दास स्वामी के प्रयासों से जन-जागृति का फैलाव होना शुरू हुआ जो लगभग 1930 तक चलता रहा सन 1930 में बीकानेर षडयंत्र केस में लाला खूबराम सर्राफ और सत्यनारायण सर्राफ को लंबी सजाये हुयी जोधपुर में सन 1920 में भंवर लाल सर्राफ ने ‘मारवाड सेवा संघ’ और सन 1922 में चांदमल सुराना ने ‘मारवाड़ हितकारिणी सभा’ स्थापित कर जन जाग्रति का कार्य किया सन 1928 में मारवाड़ स्टेट पीपुल्स कांफ्रेंस का अधिवेशन मारवाड में करवाने के प्रयास के लिए आनंदराज सुराणा और भंवर लाल सर्राफ को राज्य सरकार ने गिरफ्तार कर लिया इसके विरोध में नृसिंह दास लुन्कड़ , जयनारायण गज्जा और कन्हैयालाल महेश्वरी ने अपनी गिरफ्तारी दी सन 1939 में जयपुर प्रजा-मंडल को गैर-क़ानूनी घोषित कर इसके अध्यक्ष जमनालाल बजाज के जयपुर प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया इसके विरोध में सत्याग्रह हुआ और जमना लाल बजाज के साथ केवलचंद मेहता, स्वरुप चंद सोमानी, सरदारमल गोलछा आदि ने गिरफ्तारी दी इस आंदोलन में श्रीमती सुमति देवी खेतान ने सक्रिय रूप से भाग लिया सिद्धराज ढढढा और सीताराम सेक्सरिया ने बाहर से आंदोलन का संचालन किया सन 1942 में मारवाड़ लोक परिषद के नेताओं कि गिरफ्तारी के विरोध में कलकत्ते में मालचंद अग्रवाल की अध्यक्षता में हुई विरोध सभा में सीताराम सेकसरिया, बसंतलाल मुरारका, मंगतुराम जयपुरिया, इश्वरप्रसाद जालान, रामेश्वरलाल नोपानी, रामकुमार भुवालका, भंवरलाल सिंघी, गंगाप्रसाद भौतिका, मातादीन खेतान आदि ने भाग लिया सन 1945 में व्यापारियों ने आयकर विरोधी आंदोलन चलाया और राज्य में उत्तरदायी शाषन स्थापित करने की मांग की कन्हैयालाल सेठिया ने ‘आगीवाण’ पत्रिका निकालकर राज्य प्रशाशन को झझकोर दिया आज़ादी प्राप्त होने के बाद बनी संविधान सभा में जबलपुर के मारवाड़ी व्यापारी और साहित्यकार गोविन्ददास मालपानी सदस्य थे इस प्रकार भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास का गौरव शाली अध्याय लिखने वाले मारवाड़ी व्यापारियों ने पूरे देश के लोगों के साथ मिलकर तन,मन और धन से स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी महत्ती भूमिका दर्ज की (समाप्त)

[‘डॉ. गिरिजा शंकर शर्मा’ के शोध प्रबंध (1970) और राजस्थानी में प्रकाशित पत्रिका ‘जागती जोग’ में प्रकाशित सामग्री के आधार पर ]- केशव भट्टड़

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