Tuesday, May 25, 2010
रंगकर्मी श्यामानंद जालान के निधन पर शोक
पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज हिंदी के प्रसिद्ध नाट्यकार और कलाकार श्यामानंद जालान के निधन पर गहरा शोक प्रकट करता है एक वर्ष तक कैंसर से जूझने वाले 79 वर्षीय जालान का निधन कल हुआ स्कॉटिश चर्च कोलेज के छात्र जालान ने 1949 में ‘नया समाज’ से अपनी नाट्य अभिनय यात्रा और 1953 में बच्चों के नाटक ‘एक थी राजकुमारी’ से नाट्य निर्देशन की यात्रा प्रारम्भ की 1934 में एक पारंपरिक मारवाड़ी परिवार में जन्में जालान ने हिंदी नाटकों के अलावा बंगला नाटकों में भी कार्य किया पश्चिम बंग नाट्य उन्नयन समिति के 1972 में मंचित नाटक ‘तुगलक’ में उन्होंने शम्भू मित्र, देबब्रत दत्ता और रुद्रप्रसाद सेनगुप्ता के साथ काम किया 1955 में उन्होंने ‘अनामिका’ की स्थापना की और इसके साथ ही कोलकाता में हिंदी के गंभीर नाटकों का दौर शुरू हुआ नाटकों के अलावा जालान ने फिल्मों और टीवी सीरियलों में अभिनय और निर्देशन किया उनके द्वारा अभिनीत फिल्मों में श्याम बेनेगल की ‘आरोहण’, एम. एस. सथ्यु की ‘ कहाँ कहाँ से गुजार गया’ और रोनाल्ड जोफ्फ़ की ‘सिटी ऑफ जॉय’ उल्लेखनीय हैं थियेटर के अलावा उनका योगदान अन्य क्षेत्रों में भी रहा पेशे से एडवोकेट जालान ‘संगीत नाटक अकेडमी’ के उपाध्यक्ष, ‘कत्थक केंद्र’,’साइंस सिटी’ और कोलकाता के ‘बिरला इंडस्ट्रियल एंड टेक्नॉलोजी म्यूजियम’ के अध्यक्ष रहे उन्होंने नृत्य और नाटक को समर्पित संस्था ‘पदातिक’ की स्थापना की जालान ने इब्सेन, ब्रेख्त, रबिन्द्रनाथ, बादल सरकार को हिंदी में प्रस्तुत किया महाश्वेता देवी के उपन्यास ‘हज़ार चौरासी की माँ’ को नाट्य रूप दिया ‘आषाढ का एक दिन’ (1960) और ‘आधे अधूरे’ (1970) के लिये नाट्य प्रेमी उन्हें हमेशा याद रखेंगे पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज के केंद्रीय कार्यकारिणी के सदस्य नाट्य निर्देशक प्रताप जायसवाल ने श्यामानंद जालान के निधन पर शोक प्रकट करते हुए कहा कि श्यामानन्द जालान का निधन पुरे देश के रंगमंच की एक बड़ी क्षति है कोलकाता के हिंदी रंगमंच को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित और प्रतिष्ठित करने में उनकी ऐतिहासिक भूमिका रही श्यामानंद जी पदातिक मिनीयेचर थियेटर के माध्यम से इंटिमेट थियेटर की शुरुआत करने वाले पुरोधा थे हम उनके शोक संतप्त परिवार के प्रति हार्दिक संवेदना ज्ञापित करते हैं नाट्य समिक्षक प्रेम कपूर ने श्यामानंद जालान को कोलकाता का ग्रेटेस्ट शोमैन बताते हुए कहा कि उनका जाना हिंदी रंगमंच की अपूरणीय क्षति है वे प्रयोगधर्मी नाट्य निर्देशक थे हज़ार चौरासी की माँ, लहरों के राज हंस आदि कई यादगार नाटक उन्होंने दिए रामकथा रामकहानी के कथानक पर मतविरोध हो सकता है लेकिन प्रस्तुति लाजवाब थी उनका स्थानापन्न निकट भविष्य में कहीं दिखाई नहीं पड़ता
केशव भट्टड़
Sunday, May 23, 2010
अभिनय की नयी प्रस्तुति आवां का मंचन
कोलकाता 21 मई कोलकाता प्रेस क्लब में अभिनय कि नयी प्रस्तुति “आवां” की घोषणा के लिये आयोजित संवाददाता सम्मलेन में निर्देशक प्रताप जायसवाल ने कहा कि “समसामयिक विषयों पर समाज में व्याप्त कुरीतियों, कुसंस्कारों और रुढियों को दूर करने का संकल्प लेकर सामाजिक शिक्षा के नाटक प्रस्तुत करना अभिनय का उद्धेश्य रहा है इसी नीति के तहत अभिनय द्वारा मंचित नाटकों का चयन किया जाता है आवां नाटक आधुनिकता के नाम पर पश्चिमी प्रभाव से प्रभावित भारतीय नारी मुक्ति आंदोलन कि व्यर्थता को संप्रेषित करने वाला विषय अपने में समेटे हुवे है जो भारतीय नारी को अपने संस्कारों की जमीन पर अपने मुक्ति आंदोलन की रणनीति बनाने की सार्थक प्रेरणा देता है” अभिनय के संयुक्त संयोजक अजय धोना ने बताया कि सोमवार 24 मई को शिशिर मंच में सायं 6 बजे नाटक की पहली प्रस्तुति की जायेगी इस अवसर पर लेखिका चित्रा मुदगल तथा प्रकाशक महेश भारद्वाज विशेष रूप से उपस्थित रहेंगे सहायक सचिव अमित रॉय ने संवाददाता सम्मलेन में बताया कि अभिनय ने भारतेंदु हरीशचंद्र, सफ़दर हाशमी, मोहन राकेश, शंकर शेष, ब्रेख्त, चेखव, प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, बुद्धदेब भट्टाचार्य आदि की रचनाओं पर सफल नाटकों की प्रस्तुति की है मीडिया सलाहकार पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज के मीडिया प्रभारी केशव भट्टड़ ने कहा कि पश्चिम बंगाल के हिंदी नाट्य आंदोलन को आवां के प्रस्तुतिकरण से निश्चित रूप से गति मिलेगी चित्रा मुदगल के बहुचर्चित उपन्यास ‘आवां’ का महानगर में नाट्य प्रस्तुतिकरण भारतीय नाट्य जगत के लिये एक धरोहर साबित होगा
केशव भट्टड़
कोलकाता 21 मई कोलकाता प्रेस क्लब में अभिनय कि नयी प्रस्तुति “आवां” की घोषणा के लिये आयोजित संवाददाता सम्मलेन में निर्देशक प्रताप जायसवाल ने कहा कि “समसामयिक विषयों पर समाज में व्याप्त कुरीतियों, कुसंस्कारों और रुढियों को दूर करने का संकल्प लेकर सामाजिक शिक्षा के नाटक प्रस्तुत करना अभिनय का उद्धेश्य रहा है इसी नीति के तहत अभिनय द्वारा मंचित नाटकों का चयन किया जाता है आवां नाटक आधुनिकता के नाम पर पश्चिमी प्रभाव से प्रभावित भारतीय नारी मुक्ति आंदोलन कि व्यर्थता को संप्रेषित करने वाला विषय अपने में समेटे हुवे है जो भारतीय नारी को अपने संस्कारों की जमीन पर अपने मुक्ति आंदोलन की रणनीति बनाने की सार्थक प्रेरणा देता है” अभिनय के संयुक्त संयोजक अजय धोना ने बताया कि सोमवार 24 मई को शिशिर मंच में सायं 6 बजे नाटक की पहली प्रस्तुति की जायेगी इस अवसर पर लेखिका चित्रा मुदगल तथा प्रकाशक महेश भारद्वाज विशेष रूप से उपस्थित रहेंगे सहायक सचिव अमित रॉय ने संवाददाता सम्मलेन में बताया कि अभिनय ने भारतेंदु हरीशचंद्र, सफ़दर हाशमी, मोहन राकेश, शंकर शेष, ब्रेख्त, चेखव, प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, बुद्धदेब भट्टाचार्य आदि की रचनाओं पर सफल नाटकों की प्रस्तुति की है मीडिया सलाहकार पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज के मीडिया प्रभारी केशव भट्टड़ ने कहा कि पश्चिम बंगाल के हिंदी नाट्य आंदोलन को आवां के प्रस्तुतिकरण से निश्चित रूप से गति मिलेगी चित्रा मुदगल के बहुचर्चित उपन्यास ‘आवां’ का महानगर में नाट्य प्रस्तुतिकरण भारतीय नाट्य जगत के लिये एक धरोहर साबित होगा
केशव भट्टड़
प्रेस क्लब, कोलकाता ,19 अप्रेल 2010
अभिनन्दन कार्यक्रम की घोषणा के लिए आयोजित प्रेस कांफेरेंस
श्री चम्पालाल मोहता ‘अनोखा’- एक परिचय
राजस्थान की सांस्कृतिक राजधानी बीकानेर में सन 1934-35 में श्री चंपा लाल मोहता स्व. मानक लाल मोहता एवं श्रीमती इमारती देवी मोहता के पुत्र रूप में जन्में
जन्म के ठीक 19 दिन पहले पिता का स्वर्गवास हो गया इसलिए लोगो ने इन्हें अप -शुगनी समझा 9 वर्ष के होते होते ममतामई माँ भी चल बसी बड़े भाई मोहनलाल एवं भाभी रतनी देवी ने माता पिता की भूमिका निभाई प्राथमिक शिक्षा बीकानेर में ही हुई द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पहली बार कोलकाता आये समय रहा होगा सन 40-42 का भगदड़ के चलते वापिस बीकानेर लौट गए इसी दौरान माँ की मृत्यु हुई सन 45-46 में वापिस कोलकाता आये और तब से यहीं के होकर रह गए सन 46 में श्री महेश्वरी विद्यालय में प्रवेश लिया भाई साहब जितना कमाते थे उसमें स्कूल की फ़ीस देना संभव नहीं था चम्पालाल जी पढ़ना चाहते थे विद्यालय व्यवस्थापकों से फ़ीस माफ करवा कर , किसी भी तरह दसवीं कक्षा तक पढाई की किताबों-कापियों के खर्च की मारामारी अपनी जगह थी
विद्यार्थी जीवन में ही उनकी रचनाएँ महेश्वरी विद्यालय की पत्रिका ‘भारती’ में प्रकाशित होने लगी विद्यालय के उप प्रधानाध्यापक श्री वी.एन.टी. ने चम्पालाल जी की प्रतिभा को देखते हुए उन्हें ‘अनोखा’ कहा तो उसे ही उन्होंने अपने उपनाम के रूप में अपना लिया पुस्तकालयों में पढाई कर ज्ञानार्जन करते हुए कवि सम्मेलनों , मुशायरों में जा-गा कर उन्होंने अपनी काव्य प्रतिभा को निखारा
सन 52-54 के मध्य कवि सम्मेलनों – मुशायरों में शिरकत करते हुए , एक उभरते हुए सितारे के रूप में स्थापित हुआ युवा शायर चम्पालाल मोहता ‘अनोखा’ हिन्दुस्तान के तमाम बड़े और मशहूर कवियों , शायरों के साथ ‘अनोखा’ ने अपने अनोखे रंग-ढंग में काव्य –पाठ किया है, उनसे अपनी पीठ ठुकावाई है उस समय कोलकाता और आस-पास के अंचलों में प्राय: सभी कवि सम्मेलनों में उनकी उपस्थिति दर्ज होती मूनलाईट थियेटर के लिए भी ‘अनोखा’ गीत लिखते रहे कोलकाता बाल परिषद के प्रकाशन नई-किरण ,खिलते कमल में रचनाएँ प्रकाशित हुई
अनिरुद्ध कर्मशील के संपादन में , साप्ताहिक विश्वमित्र में सर्वप्रथम रचंयें प्रकाशित हुई लगातार सिलसिला चला देश भर में कई पत्र पत्रिकाओं ने ‘अनोखा’ को प्रकाशीत किया सन 1955 में पुरूलिया निवासी ‘कशी’ से विवाह के बाद , नौकरी के सिलसिले में वे राऊरकेला चले गए 18 मार्च सन 1957 को एक ह्रदय विदारक अगलगी की घटना ने जीवन साथी छीन लिया उस घटना में ‘अनोखा’ भी इतने गंभीर रूपप से जख्मी हुए की छः महीने अस्पताल में रहे
उनके भाई साहब को अब यह चिंता सताने लगी कि कहीं यह लड़का भटक न जाए रोजी रोटी के जुगाड में कोलकाता आये साहसी युवक कविताई के चक्कर में भूखों न मरे इसलिए एक उपन्यास , ‘मधुशाला’ के प्रत्युत्तर में 125 छंदों में रचित ‘रणशाला’ सहित ढेरों गीत-गज़लों की पांडुलिपियाँ तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनाओं का रजिस्टर भाई साहब ने चार-आने किलो के भाव कबाड़ी को दे दिया अस्पताल से लौटे ‘अनोखा’ पर यह भीषण वज्रपात साबित हुआ वह विद्रोही हो गया
जैसे-तैसे जीवन यापन करते हुए उन्होंने अन्तर्जातीय-अंतरवर्णीय विवाह कर घर संसार बसा लिया तीन बेटों के साथ जीवन की गाड़ी आगे बढती रही शायर-कवि-गीतकार बनने के सपने ने तो दम तोड़ दिया, लेकिन कविताई ने इनका साथ नहीं छोड़ा लोकपर्व गणगौर हो या कोई सामाजिक-सांस्कृतिक आयोजन-लोग इनसे निवेदनपूर्वक गीतों-ग़ज़लों की फरमाइश करते ये भी लिख कर उन्हें दे देते अपने पास नहीं रखते थे
भला हो चाचीजी(पुतली देवी) का जिन्होंने कागजों के वे टुकड़े रद्दी में से संभाल कर रख लिए, जिनमे कई उम्दा रचनाएँ हुई थी इसी क्रम में बहुत से गायक-गायिकाओं ने इनसे जो रचनाएँ लिखवाई, उनके यथा संभव संकलन का बीड़ा उठाया गया और वे अब एक संग्रह के रूप में प्रकाशित होने को हैं
दुर्दांत जिजीविषा के धनी, बीकानेरी मिजाज के मस्तमौला , प्रगतिशील विचारक , चितन से साम्यवादी , सिंहों से साहसी ‘अनोखा’ आज कल कंठनली के कैंसर से संघर्ष कर रहें हैं एक वर्ष पहले यह कहने वाले कि ‘अब ज्यादा समय नहीं है’, आज यह कह रहें हैं कि ‘इतनी जल्दी जानेवाला नहीं हूँ क्योंकि शोकसभा तो मेरे मित्रों ने 1957 में ही कर दी थी’
केशव भट्टड़ , कार्यक्रम संयोजक
अभिनन्दन कार्यक्रम की घोषणा के लिए आयोजित प्रेस कांफेरेंस
श्री चम्पालाल मोहता ‘अनोखा’- एक परिचय
राजस्थान की सांस्कृतिक राजधानी बीकानेर में सन 1934-35 में श्री चंपा लाल मोहता स्व. मानक लाल मोहता एवं श्रीमती इमारती देवी मोहता के पुत्र रूप में जन्में
जन्म के ठीक 19 दिन पहले पिता का स्वर्गवास हो गया इसलिए लोगो ने इन्हें अप -शुगनी समझा 9 वर्ष के होते होते ममतामई माँ भी चल बसी बड़े भाई मोहनलाल एवं भाभी रतनी देवी ने माता पिता की भूमिका निभाई प्राथमिक शिक्षा बीकानेर में ही हुई द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पहली बार कोलकाता आये समय रहा होगा सन 40-42 का भगदड़ के चलते वापिस बीकानेर लौट गए इसी दौरान माँ की मृत्यु हुई सन 45-46 में वापिस कोलकाता आये और तब से यहीं के होकर रह गए सन 46 में श्री महेश्वरी विद्यालय में प्रवेश लिया भाई साहब जितना कमाते थे उसमें स्कूल की फ़ीस देना संभव नहीं था चम्पालाल जी पढ़ना चाहते थे विद्यालय व्यवस्थापकों से फ़ीस माफ करवा कर , किसी भी तरह दसवीं कक्षा तक पढाई की किताबों-कापियों के खर्च की मारामारी अपनी जगह थी
विद्यार्थी जीवन में ही उनकी रचनाएँ महेश्वरी विद्यालय की पत्रिका ‘भारती’ में प्रकाशित होने लगी विद्यालय के उप प्रधानाध्यापक श्री वी.एन.टी. ने चम्पालाल जी की प्रतिभा को देखते हुए उन्हें ‘अनोखा’ कहा तो उसे ही उन्होंने अपने उपनाम के रूप में अपना लिया पुस्तकालयों में पढाई कर ज्ञानार्जन करते हुए कवि सम्मेलनों , मुशायरों में जा-गा कर उन्होंने अपनी काव्य प्रतिभा को निखारा
सन 52-54 के मध्य कवि सम्मेलनों – मुशायरों में शिरकत करते हुए , एक उभरते हुए सितारे के रूप में स्थापित हुआ युवा शायर चम्पालाल मोहता ‘अनोखा’ हिन्दुस्तान के तमाम बड़े और मशहूर कवियों , शायरों के साथ ‘अनोखा’ ने अपने अनोखे रंग-ढंग में काव्य –पाठ किया है, उनसे अपनी पीठ ठुकावाई है उस समय कोलकाता और आस-पास के अंचलों में प्राय: सभी कवि सम्मेलनों में उनकी उपस्थिति दर्ज होती मूनलाईट थियेटर के लिए भी ‘अनोखा’ गीत लिखते रहे कोलकाता बाल परिषद के प्रकाशन नई-किरण ,खिलते कमल में रचनाएँ प्रकाशित हुई
अनिरुद्ध कर्मशील के संपादन में , साप्ताहिक विश्वमित्र में सर्वप्रथम रचंयें प्रकाशित हुई लगातार सिलसिला चला देश भर में कई पत्र पत्रिकाओं ने ‘अनोखा’ को प्रकाशीत किया सन 1955 में पुरूलिया निवासी ‘कशी’ से विवाह के बाद , नौकरी के सिलसिले में वे राऊरकेला चले गए 18 मार्च सन 1957 को एक ह्रदय विदारक अगलगी की घटना ने जीवन साथी छीन लिया उस घटना में ‘अनोखा’ भी इतने गंभीर रूपप से जख्मी हुए की छः महीने अस्पताल में रहे
उनके भाई साहब को अब यह चिंता सताने लगी कि कहीं यह लड़का भटक न जाए रोजी रोटी के जुगाड में कोलकाता आये साहसी युवक कविताई के चक्कर में भूखों न मरे इसलिए एक उपन्यास , ‘मधुशाला’ के प्रत्युत्तर में 125 छंदों में रचित ‘रणशाला’ सहित ढेरों गीत-गज़लों की पांडुलिपियाँ तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनाओं का रजिस्टर भाई साहब ने चार-आने किलो के भाव कबाड़ी को दे दिया अस्पताल से लौटे ‘अनोखा’ पर यह भीषण वज्रपात साबित हुआ वह विद्रोही हो गया
जैसे-तैसे जीवन यापन करते हुए उन्होंने अन्तर्जातीय-अंतरवर्णीय विवाह कर घर संसार बसा लिया तीन बेटों के साथ जीवन की गाड़ी आगे बढती रही शायर-कवि-गीतकार बनने के सपने ने तो दम तोड़ दिया, लेकिन कविताई ने इनका साथ नहीं छोड़ा लोकपर्व गणगौर हो या कोई सामाजिक-सांस्कृतिक आयोजन-लोग इनसे निवेदनपूर्वक गीतों-ग़ज़लों की फरमाइश करते ये भी लिख कर उन्हें दे देते अपने पास नहीं रखते थे
भला हो चाचीजी(पुतली देवी) का जिन्होंने कागजों के वे टुकड़े रद्दी में से संभाल कर रख लिए, जिनमे कई उम्दा रचनाएँ हुई थी इसी क्रम में बहुत से गायक-गायिकाओं ने इनसे जो रचनाएँ लिखवाई, उनके यथा संभव संकलन का बीड़ा उठाया गया और वे अब एक संग्रह के रूप में प्रकाशित होने को हैं
दुर्दांत जिजीविषा के धनी, बीकानेरी मिजाज के मस्तमौला , प्रगतिशील विचारक , चितन से साम्यवादी , सिंहों से साहसी ‘अनोखा’ आज कल कंठनली के कैंसर से संघर्ष कर रहें हैं एक वर्ष पहले यह कहने वाले कि ‘अब ज्यादा समय नहीं है’, आज यह कह रहें हैं कि ‘इतनी जल्दी जानेवाला नहीं हूँ क्योंकि शोकसभा तो मेरे मित्रों ने 1957 में ही कर दी थी’
केशव भट्टड़ , कार्यक्रम संयोजक
“ आज की परिस्थितिओं में भगतसिंह की सार्थकता ”
भगतसिंह विचार मंच ने भगतसिंह ,सुखदेव और राजगुरु के शहादत दिवस पर 23 मार्च को मंच कार्यालय में “ आज की परिस्थितिओं में भगतसिंह की सार्थकता” विषयक परिचर्चा का आयोजन किया, जिसके माध्यम से भगतसिंह को आज की परिस्थितिओं में समझने का प्रयास किया गया कार्यक्रम में डॉ अशोक सिंह, केशव भट्टर, प.बं. राज्य विश्वविद्यालय (बारासात) की प्रेमचंद परिषद की संयुक्त संयोजक श्रेया जायसवाल, भगतसिंह विचार मंच की संयुक्त संयोजक शिक्षिका नीतु सिंह, सुरेन्द्रनाथ सांध्य कॉलेज के छात्र दिनेश कुमार शर्मा , श्री जैन विद्यालय के छात्र अंकित तिवारी, शिवम दुबे, पियूष कुमार गुप्ता, आकाश डागा, अनुपम दीक्षित और आतिश कुमार गुप्ता ने परिचर्चा में अपने विचार व्यक्त किये और अमर शहीदों को श्रधांजली दी
डॉ अशोक सिंह ने कहा कि आज इतने संचार माध्यम होने के बावजूद व्यापक स्तर पर भगत सिंह के विचारों से लोग अनभिज्ञ हैं 1985 से पहले भगत सिंह पर अच्छी पुस्तकें नहीं थी प्रो. जगमोहन सिंह और प्रो. चमनलाल के प्रयासों से भगत सिंह पर अच्छा लेखन हुवा बंगाल से भगत सिंह का काफी अच्छा परिचय रहा- दुर्गापुर , बरसात , हावड़ा में उनकी मूर्तियां हैं - लेकिन अनुवाद के अभाव में यहाँ उन्हें ज्यादा लोग नहीं जान पाते इसका एक कारण केंद्रीय सरकारों की भगतसिंह के प्रति अवहेलना है भगतसिंह पर फ़िल्में बनी तो लगा कुछ काम शुरू हुआ है लेकिन भगतसिंह को पाठ्यक्रम में लाना जरूरी है ताकि युवा वर्ग उन्हें जान सके इसके लिए भगत सिंह विचार मंच को लगातार प्रयास करना होगा लगातार उन पर गोष्ठियों का आयोजन करना होगा इसमें मीडिया का सहयोग भी जरुरी है भगतसिंह ने कोर्ट-ट्रायल के समय मीडिया के माध्यम से ही लोगों तक अपनी बातें पहुंचाई “बम कैसे बनाया जाता है ?”- कोर्ट-ट्रायल के समय उन्होंने मीडिया के माध्यम से लोगों तक पहुँचाया हमें भगतसिंह के विचारों को नयी पीढ़ी तक पहुंचाना होगा भगतसिंह किसी राजनितिक दल के लिए नहीं ,देश के लिए सामने आये नारे लगाने से कुछ नहीं होगा भगतसिंह मरे नहीं, वह आज भी जिंदा है, वह चिंगारी आज भी जल रही है युवाओं को समझना होगा होगा कि वे कैसी आज़ादी चाहते थे , और कैसी आज़ादी हमें मिली ?
मीडिया प्रभारी केशव भट्टर ने कहा कि शुरू में भगतसिंह एक क्रन्तिकारी हैं यही जानता था परन्तु डॉ. अशोक सिंह से मिली चमनलाल की पुस्तक “भगतसिंह के संपूर्ण दस्तावेज़” और प्रो. जगमोहन सिंह से वार्ता के बाद मैंने उन्हें क्रांतिकारी विचारक और सजग भविष्यदृष्टा के रूप में जाना भाषा, शिक्षा, समाज, राजनीति और धर्म के अलावा तत्कालीन अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों पर उनका लेखन बेहद गंभीर और प्रभावशाली है उनकी जेल डायरी में लिखी यह पंक्ति – “दूसरे महान हैं, क्योंकि हम घुटनों पर खड़े हैं, आओ तनकर खड़े हों ” – बेहद उत्प्रेरक है धर्म , जाती, लिंग, में समाज को बाँटने वाले तत्त्व सक्रिय हैं, जो समाज को एक नहीं होने देंगे भगतसिंह इनका विरोध करते थे एसेम्बली में बम फोड़कर उन्होंने बहरे कानों तक यानि तत्कालीन साम्राज्यवादी ताकतों और उनके सामाजिक संपर्कों तक अपनी बात पहुंचाई जिस उम्र में आज के युवा और बच्चे खेल, सिनेमा में रूचि रखते हैं, भगतसिंह ने देश, समाज, भाषा के बारें में सोचा और लिखा कुल 11 वर्षों का उनका इतिहास है जेल में उनका वजन बढ़ जाना उनकी निर्भीकता कि मिसाल है “ हिम्मत मत हारना ” – अपने भाई को उन्होंने अंतिम पत्र में लिखा – उनका यह सन्देश आज हम सबके लिए है सच्चे और खरे लोग कभी नहीं मरते , उनकी यादें उनके विचारों के माध्यम से जीवित रहती है भगतसिंह पर एनीमेशन फ़िल्में बनानी चाहिए
भगतसिंह विचार मंच की संयुक्त संयोजक शिक्षिका नीतु सिंह ने कहा कि आज के बच्चों और युवाओं की प्राथमिकताएं बदल गयी हैं भगत सिंह को बच्चों और युवाओं तक पहुँचाने के लिए समयानुसार तरीके अपनाये जाने चाहिये एनिमेंशन फिल्म का उन्होंने समर्थन किया उन्होंने कहा कि देश के युवक सो रहें हैं घर, क्रिकेट, करियर के अलावा उनके पास सोचने को कुछ नहीं है कुछ समय के लिए भाषण देना अलग बात है और कार्य करना अलग बात है भगतसिंह के विचारों पर समग्र रूप से कार्य करना होगा
प.बं. राज्य विश्वविद्यालय (बारासात) की प्रेमचंद परिषद की संयुक्त संयोजक श्रेया जायसवाल ने कहा कि आज कि दुनिया बाजारवाद तक सिमित हो गयी है भगतसिंह ने सोचा कि हम गुलाम क्यों हैं ? हम सब देशवासी एक हैं, सभी को आज़ादी मिलनी चाहिये उनके विचारों को छुपाया गया लेकिन आज सब सामने आ रहा है भगतसिंह के विचारों को महसूस करना होगा उनका जज्बा अपने भीतर लाना चाहिए
छात्र दिनेश शर्मा ने कहा कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद के लिए जीवित भगतसिंह से ज्यादा खतरनाक मरा हुआ भगतसिंह होगा- उनकी यह बात सही साबित हुई छात्र अंकित तिवारी ने कहा कि भगतसिंह से प्रेरणा ले तो देश काफी तरक्की करेगा छात्र शिवम दुबे ने कहा कि भगतसिंह ने ब्रिटिश हुकूमत को हिलाकर रख दिया छात्र अनुपम दीक्षित ने कहा कि उनके कार्य आज भी बाकि हैं, हमें उनके विचारों को फैलाना होगा छात्र पियूष कुमार गुप्ता ने कहा कि उनसे पूरा देश प्रभावित रहा है छात्र अनुपम दीक्षित और आकाश डागा ने कहा कि स्कूल में भगतसिंह पर कभी चर्चा नहीं हुई, इसलिए मुझे उनके बारें में जानकारी नहीं है
इस अवसर पर भगतसिंह विचार मंच द्वारा गत दिनों आयोजित “आज की परिस्थितिओं में भगतसिंह की सार्थकता” विषयक निबन्ध प्रतियोगिता में भाग लेने वालें विद्यार्थियों को प्रो. जगमोहन सिंह द्वारा हस्ताक्षरित प्रमाण पत्र दिए गए प्रो. अनय निर्णायक थे प्रतियोगिता में महानगर के सुरेन्द्रनाथ सांध्य कॉलेज, सावित्री पाठशाला, आदर्श बालिका विद्यालय और श्री जैन विद्यालय के विद्यार्थियों ने भाग लिया कालेज वर्ग में सुरेन्द्रनाथ सांध्य कॉलेज के दिनेश शर्मा ने पहला स्थान और इसी कॉलेज की वीणा साव ने दूसरा स्थान प्राप्त किया स्कूल वर्ग में श्री जैन विद्यालय के अंकित तिवारी ,विवेक राय और शिवम दुबे ने क्रमशः पहला, दूसरा और तीसरा स्थान प्राप्त किया कार्यक्रम का संचालन भगतसिंह विचार मंच की संयुक्त संयोजक दिव्या प्रसाद ने किया अपने संयोजकीय व्यक्तव्य का समापन करते हुए दिव्या प्रसाद ने अमर शहीदों को श्रधांजलि शिव मंगल सिंह ‘सुमन’ की निम्न पंक्तियों से दी – “ तुम जीवित थे तो सुनने को जी करता था , तुम चले गए तो गुनने को जी करता है तुम सिमटे थे तो बिखरी बिखरी सांसे थी, तुम बिखर गए तो चुनने को जी करता है ”
केशव भट्टर
भगतसिंह विचार मंच ने भगतसिंह ,सुखदेव और राजगुरु के शहादत दिवस पर 23 मार्च को मंच कार्यालय में “ आज की परिस्थितिओं में भगतसिंह की सार्थकता” विषयक परिचर्चा का आयोजन किया, जिसके माध्यम से भगतसिंह को आज की परिस्थितिओं में समझने का प्रयास किया गया कार्यक्रम में डॉ अशोक सिंह, केशव भट्टर, प.बं. राज्य विश्वविद्यालय (बारासात) की प्रेमचंद परिषद की संयुक्त संयोजक श्रेया जायसवाल, भगतसिंह विचार मंच की संयुक्त संयोजक शिक्षिका नीतु सिंह, सुरेन्द्रनाथ सांध्य कॉलेज के छात्र दिनेश कुमार शर्मा , श्री जैन विद्यालय के छात्र अंकित तिवारी, शिवम दुबे, पियूष कुमार गुप्ता, आकाश डागा, अनुपम दीक्षित और आतिश कुमार गुप्ता ने परिचर्चा में अपने विचार व्यक्त किये और अमर शहीदों को श्रधांजली दी
डॉ अशोक सिंह ने कहा कि आज इतने संचार माध्यम होने के बावजूद व्यापक स्तर पर भगत सिंह के विचारों से लोग अनभिज्ञ हैं 1985 से पहले भगत सिंह पर अच्छी पुस्तकें नहीं थी प्रो. जगमोहन सिंह और प्रो. चमनलाल के प्रयासों से भगत सिंह पर अच्छा लेखन हुवा बंगाल से भगत सिंह का काफी अच्छा परिचय रहा- दुर्गापुर , बरसात , हावड़ा में उनकी मूर्तियां हैं - लेकिन अनुवाद के अभाव में यहाँ उन्हें ज्यादा लोग नहीं जान पाते इसका एक कारण केंद्रीय सरकारों की भगतसिंह के प्रति अवहेलना है भगतसिंह पर फ़िल्में बनी तो लगा कुछ काम शुरू हुआ है लेकिन भगतसिंह को पाठ्यक्रम में लाना जरूरी है ताकि युवा वर्ग उन्हें जान सके इसके लिए भगत सिंह विचार मंच को लगातार प्रयास करना होगा लगातार उन पर गोष्ठियों का आयोजन करना होगा इसमें मीडिया का सहयोग भी जरुरी है भगतसिंह ने कोर्ट-ट्रायल के समय मीडिया के माध्यम से ही लोगों तक अपनी बातें पहुंचाई “बम कैसे बनाया जाता है ?”- कोर्ट-ट्रायल के समय उन्होंने मीडिया के माध्यम से लोगों तक पहुँचाया हमें भगतसिंह के विचारों को नयी पीढ़ी तक पहुंचाना होगा भगतसिंह किसी राजनितिक दल के लिए नहीं ,देश के लिए सामने आये नारे लगाने से कुछ नहीं होगा भगतसिंह मरे नहीं, वह आज भी जिंदा है, वह चिंगारी आज भी जल रही है युवाओं को समझना होगा होगा कि वे कैसी आज़ादी चाहते थे , और कैसी आज़ादी हमें मिली ?
मीडिया प्रभारी केशव भट्टर ने कहा कि शुरू में भगतसिंह एक क्रन्तिकारी हैं यही जानता था परन्तु डॉ. अशोक सिंह से मिली चमनलाल की पुस्तक “भगतसिंह के संपूर्ण दस्तावेज़” और प्रो. जगमोहन सिंह से वार्ता के बाद मैंने उन्हें क्रांतिकारी विचारक और सजग भविष्यदृष्टा के रूप में जाना भाषा, शिक्षा, समाज, राजनीति और धर्म के अलावा तत्कालीन अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों पर उनका लेखन बेहद गंभीर और प्रभावशाली है उनकी जेल डायरी में लिखी यह पंक्ति – “दूसरे महान हैं, क्योंकि हम घुटनों पर खड़े हैं, आओ तनकर खड़े हों ” – बेहद उत्प्रेरक है धर्म , जाती, लिंग, में समाज को बाँटने वाले तत्त्व सक्रिय हैं, जो समाज को एक नहीं होने देंगे भगतसिंह इनका विरोध करते थे एसेम्बली में बम फोड़कर उन्होंने बहरे कानों तक यानि तत्कालीन साम्राज्यवादी ताकतों और उनके सामाजिक संपर्कों तक अपनी बात पहुंचाई जिस उम्र में आज के युवा और बच्चे खेल, सिनेमा में रूचि रखते हैं, भगतसिंह ने देश, समाज, भाषा के बारें में सोचा और लिखा कुल 11 वर्षों का उनका इतिहास है जेल में उनका वजन बढ़ जाना उनकी निर्भीकता कि मिसाल है “ हिम्मत मत हारना ” – अपने भाई को उन्होंने अंतिम पत्र में लिखा – उनका यह सन्देश आज हम सबके लिए है सच्चे और खरे लोग कभी नहीं मरते , उनकी यादें उनके विचारों के माध्यम से जीवित रहती है भगतसिंह पर एनीमेशन फ़िल्में बनानी चाहिए
भगतसिंह विचार मंच की संयुक्त संयोजक शिक्षिका नीतु सिंह ने कहा कि आज के बच्चों और युवाओं की प्राथमिकताएं बदल गयी हैं भगत सिंह को बच्चों और युवाओं तक पहुँचाने के लिए समयानुसार तरीके अपनाये जाने चाहिये एनिमेंशन फिल्म का उन्होंने समर्थन किया उन्होंने कहा कि देश के युवक सो रहें हैं घर, क्रिकेट, करियर के अलावा उनके पास सोचने को कुछ नहीं है कुछ समय के लिए भाषण देना अलग बात है और कार्य करना अलग बात है भगतसिंह के विचारों पर समग्र रूप से कार्य करना होगा
प.बं. राज्य विश्वविद्यालय (बारासात) की प्रेमचंद परिषद की संयुक्त संयोजक श्रेया जायसवाल ने कहा कि आज कि दुनिया बाजारवाद तक सिमित हो गयी है भगतसिंह ने सोचा कि हम गुलाम क्यों हैं ? हम सब देशवासी एक हैं, सभी को आज़ादी मिलनी चाहिये उनके विचारों को छुपाया गया लेकिन आज सब सामने आ रहा है भगतसिंह के विचारों को महसूस करना होगा उनका जज्बा अपने भीतर लाना चाहिए
छात्र दिनेश शर्मा ने कहा कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद के लिए जीवित भगतसिंह से ज्यादा खतरनाक मरा हुआ भगतसिंह होगा- उनकी यह बात सही साबित हुई छात्र अंकित तिवारी ने कहा कि भगतसिंह से प्रेरणा ले तो देश काफी तरक्की करेगा छात्र शिवम दुबे ने कहा कि भगतसिंह ने ब्रिटिश हुकूमत को हिलाकर रख दिया छात्र अनुपम दीक्षित ने कहा कि उनके कार्य आज भी बाकि हैं, हमें उनके विचारों को फैलाना होगा छात्र पियूष कुमार गुप्ता ने कहा कि उनसे पूरा देश प्रभावित रहा है छात्र अनुपम दीक्षित और आकाश डागा ने कहा कि स्कूल में भगतसिंह पर कभी चर्चा नहीं हुई, इसलिए मुझे उनके बारें में जानकारी नहीं है
इस अवसर पर भगतसिंह विचार मंच द्वारा गत दिनों आयोजित “आज की परिस्थितिओं में भगतसिंह की सार्थकता” विषयक निबन्ध प्रतियोगिता में भाग लेने वालें विद्यार्थियों को प्रो. जगमोहन सिंह द्वारा हस्ताक्षरित प्रमाण पत्र दिए गए प्रो. अनय निर्णायक थे प्रतियोगिता में महानगर के सुरेन्द्रनाथ सांध्य कॉलेज, सावित्री पाठशाला, आदर्श बालिका विद्यालय और श्री जैन विद्यालय के विद्यार्थियों ने भाग लिया कालेज वर्ग में सुरेन्द्रनाथ सांध्य कॉलेज के दिनेश शर्मा ने पहला स्थान और इसी कॉलेज की वीणा साव ने दूसरा स्थान प्राप्त किया स्कूल वर्ग में श्री जैन विद्यालय के अंकित तिवारी ,विवेक राय और शिवम दुबे ने क्रमशः पहला, दूसरा और तीसरा स्थान प्राप्त किया कार्यक्रम का संचालन भगतसिंह विचार मंच की संयुक्त संयोजक दिव्या प्रसाद ने किया अपने संयोजकीय व्यक्तव्य का समापन करते हुए दिव्या प्रसाद ने अमर शहीदों को श्रधांजलि शिव मंगल सिंह ‘सुमन’ की निम्न पंक्तियों से दी – “ तुम जीवित थे तो सुनने को जी करता था , तुम चले गए तो गुनने को जी करता है तुम सिमटे थे तो बिखरी बिखरी सांसे थी, तुम बिखर गए तो चुनने को जी करता है ”
केशव भट्टर
“पूर श्री” पत्रिका को हिंदी में प्रकाशित करने के लिए कोलकाता कोर्पोरेसन को हार्दिक बधाई
पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज “पूर श्री” पत्रिका को हिंदी में प्रकाशित करने के लिए कोलकाता कोर्पोरेसन को हार्दिक बधाई देता है अब कोलकाता कोर्पोरेसन के कार्यों की जानकारी हिंदी में उपलब्ध होगी वरिष्ठ कवि ध्रुवदेव मिश्र’ ‘पाषाण’ ने कहा कि कोलकाता के हिंदीभाषियों के लिए यह एक महत्त्वपूर्ण घटना है
केशव भट्टड़
मीडिया प्रभारी
पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज “पूर श्री” पत्रिका को हिंदी में प्रकाशित करने के लिए कोलकाता कोर्पोरेसन को हार्दिक बधाई देता है अब कोलकाता कोर्पोरेसन के कार्यों की जानकारी हिंदी में उपलब्ध होगी वरिष्ठ कवि ध्रुवदेव मिश्र’ ‘पाषाण’ ने कहा कि कोलकाता के हिंदीभाषियों के लिए यह एक महत्त्वपूर्ण घटना है
केशव भट्टड़
मीडिया प्रभारी
Majority of Marwadi Community of West Bengal are culturally reach– Keshava Bhattar
Three steps felicitation ceremony of Shri Champlal Mohta ‘Anokha’ is being organized by AKRIT – a literal cultural organization of Marwadi Community of West Benga. AKRIT was formed in Dec 2006. It has organized two Rajasthani plays –Mayyajaal & Futari Binani, translated from Hindi to Rajasthani by Gopal Kalwani, Secretary of AKRIT and staged successfully in his direction too. Keshava Bhattar ignited the idea of formation of organization with a view to promote literature & culture in which Rajasthani of WB are involved. It has organized “Premchand Jayanti” on 31st Aug 2009, presided by Dinesh Chandra Vajpai, former DG & IG of WB Police. Ashok Ranjan Thakur VC of WB State University, Barasat was the chief guest. The Jayanti was addressed by Dhruv Dev Mishra’ Pashan’,the veteran poet and others. On Sept. 3, 2009 Dhruv Dev Mishra ‘Pashan’ was felicitated and a dialogue was held on his poetry book ‘Patjhad Patjhad Vasant’. Later the 70 year old poet was awarded civic felicitation by Hon’ble Mayor Bikash Ranjan Bhattacharya, Mayor-KMC on 5th April this year. Now AKRIT is organizing felicitation of ‘Anokha’ on 25th April at Kalamandir Auditorium, Kolkata, from 10 AM. In the first step ‘Anokhi Ada’ – collection of lyrics and poems of Champalal Mohta ‘Anokha’ will be released by another veteran poet Shankar Maheshwari, book being published by AKRIT. The book is being edited by Keshav Bhattar & Sanjay Binani. Music director Amitabh Maheshwari has taken the responsibility of composition of lyrics & poems of Anokha ji and the same will be live performed in the felicitation ceremony. A souvenir,worth collection, will also be published , being edited by Ballabh Shankar Dave & Narendra Bagri. A dialogue on ‘Anokhi Ada’ will be organized on 3rd may at Bharatiya Bhasha Parishad from 5 PM in 2nd step. Undoubtedly this is a turning point of Marwadi community of WB. Actor-Director Gopal Kalwani, Secretary, expressed. We want to bring out the best of Marwadi Community of WB, said Harinarayan Rathi, President. Similar Views was expressed by Sushil Kumar Rathi, working Secretary, & Brijmohan Lal Damani, Finance Secretary of AKRIT. Chairman of reception committee Bulaki Das Bhaiya is very keen and excited for the grand event of Marwadis. We will do our best, Mr bhaiya said. Convenir Keshava Bhattar hopes that AKRIT will be cultural bridge between natives and others. In the third steps a documentary on ‘Anokha’ will be released, direction made by Keshava Bhattar. “His lyrics are power full as well as express socio-progressive trend. Indian cinema will be reacher by using his lyrics.”, said Music Director Amitabh Maheshwari. Maruti Mohta, Durga Kothari, Soma Maheshwari, Ritu Rathi and Basant Mohta, Arun Damani, Kishan Harsh has given their voice to the lyrics. Is the event shows upcoming of Middle class Marwadis in the state? “Definitely, YES, the majority of Marwadi Community of West Bengal belongs to middle class and they are culturally very great.” says Keshava Bhatter, the convener.
Three steps felicitation ceremony of Shri Champlal Mohta ‘Anokha’ is being organized by AKRIT – a literal cultural organization of Marwadi Community of West Benga. AKRIT was formed in Dec 2006. It has organized two Rajasthani plays –Mayyajaal & Futari Binani, translated from Hindi to Rajasthani by Gopal Kalwani, Secretary of AKRIT and staged successfully in his direction too. Keshava Bhattar ignited the idea of formation of organization with a view to promote literature & culture in which Rajasthani of WB are involved. It has organized “Premchand Jayanti” on 31st Aug 2009, presided by Dinesh Chandra Vajpai, former DG & IG of WB Police. Ashok Ranjan Thakur VC of WB State University, Barasat was the chief guest. The Jayanti was addressed by Dhruv Dev Mishra’ Pashan’,the veteran poet and others. On Sept. 3, 2009 Dhruv Dev Mishra ‘Pashan’ was felicitated and a dialogue was held on his poetry book ‘Patjhad Patjhad Vasant’. Later the 70 year old poet was awarded civic felicitation by Hon’ble Mayor Bikash Ranjan Bhattacharya, Mayor-KMC on 5th April this year. Now AKRIT is organizing felicitation of ‘Anokha’ on 25th April at Kalamandir Auditorium, Kolkata, from 10 AM. In the first step ‘Anokhi Ada’ – collection of lyrics and poems of Champalal Mohta ‘Anokha’ will be released by another veteran poet Shankar Maheshwari, book being published by AKRIT. The book is being edited by Keshav Bhattar & Sanjay Binani. Music director Amitabh Maheshwari has taken the responsibility of composition of lyrics & poems of Anokha ji and the same will be live performed in the felicitation ceremony. A souvenir,worth collection, will also be published , being edited by Ballabh Shankar Dave & Narendra Bagri. A dialogue on ‘Anokhi Ada’ will be organized on 3rd may at Bharatiya Bhasha Parishad from 5 PM in 2nd step. Undoubtedly this is a turning point of Marwadi community of WB. Actor-Director Gopal Kalwani, Secretary, expressed. We want to bring out the best of Marwadi Community of WB, said Harinarayan Rathi, President. Similar Views was expressed by Sushil Kumar Rathi, working Secretary, & Brijmohan Lal Damani, Finance Secretary of AKRIT. Chairman of reception committee Bulaki Das Bhaiya is very keen and excited for the grand event of Marwadis. We will do our best, Mr bhaiya said. Convenir Keshava Bhattar hopes that AKRIT will be cultural bridge between natives and others. In the third steps a documentary on ‘Anokha’ will be released, direction made by Keshava Bhattar. “His lyrics are power full as well as express socio-progressive trend. Indian cinema will be reacher by using his lyrics.”, said Music Director Amitabh Maheshwari. Maruti Mohta, Durga Kothari, Soma Maheshwari, Ritu Rathi and Basant Mohta, Arun Damani, Kishan Harsh has given their voice to the lyrics. Is the event shows upcoming of Middle class Marwadis in the state? “Definitely, YES, the majority of Marwadi Community of West Bengal belongs to middle class and they are culturally very great.” says Keshava Bhatter, the convener.
बेमिसाल मिसाल शमशेर - ध्रुवदेव मिश्र ‘पाषाण’
कोलकाता 13 मई पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज द्वारा कोलकाता प्रेस क्लब के पहले हिंदी भाषी अध्यक्ष और पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज के कार्यकारी अध्यक्ष राज मिठौलिया की अध्यक्षता में आयोजित कवियों के कवि’ शमशेर बहादुर सिंह के जन्मशती वर्ष का 12 मई को समाज के कार्यालय में वरिष्ठ कवि श्री ध्रुवदेव मिश्र ‘पाषाण’ ने उदघाटन किया अपने उदघाटन वक्तव्य में ‘पाषाण’ ने कहा कि यह वर्ष बड़ा ही महत्वपूर्ण है ‘अज्ञेय’, ‘नागार्जुन’, फैज़ अहमद फैज़, केदारनाथ अग्रवाल और शमशेर बहादुर सिंह का यह जन्मशती वर्ष है ये सारे ही कवि जीवन के ताप से बने थे जीवन की सुविधाओं का रास्ता इन्होनें नहीं चुना एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं जिसने जन-ज्वार से अपने को अलग रखा उन्होंने शमशेर जन्मशती वर्ष के आयोजन के लिए पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज को बधाई देते हुए कहा कि शमशेर एक बेमिसाल मिसाल हैं
[शमशेर मुहब्बत और खूबसूरती की तलाश के अद्वितीय शब्द शिल्पी थे वे उस सियासत के खिलाफ लगातार जूझते रहे जो आदमी और आदमी के प्यार का रिश्ता तोड़ती है खूबसूरती की उनकी तलाश किसी एक देश और जाति तक नहीं रूकती उन्हें अमरीका का ‘लिबर्टी स्टेच्यु’ ‘मास्को के लाल तारे’ से कम खूबसूरत, कम लुभावना नहीं लगता सही अर्थों में वे विश्वचेतस कलाकार थे ]
“ शमशेर जी चूँकि किसी दौड़ में शामिल नहीं थे , अंतः उस अर्थ में उन्हें कहीं पहुँचना भी नहीं था पर जो चलती गाड़ी में सवार नहीं होता, वह पिछड़ जाता है इस तेज रफ़्तार वाली दुनिया को शमशेर जी सम्हाले हुए थे – कहना उनके प्रति अतिरिक्त श्रद्धा प्रकट करना होगा, पर शायद यह कहना आलोचनात्मक दृष्टि का परिचायक माना जायेगा कि तेज दौड़ती दुनिया में वे लगभग मिसफिट थे काश ! ऐसे दो-चार ‘मिसफिट’ हमें मिल सकें तो यह दुनिया इतनी निराशा से भरी न लगे....”
रंजना अरगड़े की ये पंक्तियाँ जहाँ शमशेर जी के कवि, रचनाकार का एक परिचय और महत्व बताती हैं वहीँ बेमिसालपन का रहस्य भी खोलती हैं शमशेर यह बेमिसालपन इसलिए भी – और इसलिए भी नहीं ; बल्कि इसलिए ही हासिल कर सके कि वे किसी ‘होड़’ और ‘दौड़’ की जल्दबाजी में नहीं थे इस होड़ और जल्दबाजी का जो नतीजा आज हिंदी रचनाशीलता भोग रही है – वह भी तो शमशेर जी के बेमिसालपन का महत्व हमें बताती ही है सचमुच हिंदी रचनाशीलता की दुनिया में तब भी और अब भी बेमिसाल रह गए हैं शमशेर जी अर्जित सत्य को अपनी अनुभूतियों के प्रति साक्षी बनाने के आग्रही शमशेर जी कहते हैं-“ कवि जिन सत्यों को उद्घाटित करता है, उनका वह अपनी अनुभूतियों में साक्षी होता है”
तात्कालिकता की होड़ से अलग रह कर ही मुमकिन हो पाया शमशेर का काव्यसृजन शमशेर के सर्जक
का सटीक मूल्यांकन करते लगते हैं मुझे आलोचक अरुण महेश्वरी जब वे लिखते हैं – “ शमशेर की कवितायेँ यथार्थ और स्वप्नों के अनेक रंगों वाले निकटस्थ और दूरस्थ परस्पर विलीन होते बिबों का, मौन और मुखर भावों का एक ऐसा निजी संसार है, रिक्तताओं की ऐसी आकर्षक घाटियाँ है जो पाठक को किसी सम्मोहक इंद्रजाल की भांति अपनी ओर खींचती और गहरे उतारती जाती है”
गहरे उतर कर देखें तो स्पष्ट हो जायेगा कि शमशेर रचित उनका निजी संसार और सम्मोहक इंद्रजाल छायावादी, रहस्यवादी वायवीयता के सामानांतर एक नए कलासंसार की भी सृष्टि है जो कविता और चित्रकला की बारीकियों की परस्पर घुलनशीलता के अभाव में असंभव थी इसी घुलनशीलता में ही छिपा है शमशेर का रचा बसाया निजी एकांत, जो उन्हें होड़ से अलग ‘काल से होड़’ लेने की शक्ति देता है वे निश्चय ही विशिष्ट थे किन्तु काफिले से अलग नहीं वे उस मुक्तिबोध के सखा थे जिनका आप्त कथन है-“ मुक्ति अकेले नहीं मिलती”
मुक्तिबोध से अधिक सटिक और मार्मिक शिनाख्त कवि कलाकार शमशेर की और कौन कर पाता ? मुक्तिबोध लिखते हैं – “ शमशेर निःसंदेह एक अद्वितीय कवि हैं उनकी काव्य यात्रा नितांत स्वाभाविक है बिलकुल खरी है साथ ही वह रसमय होते हुए उलझी हुई है – जितनी कि और जैसी कि प्रत्येक वास्तविकता, अपनी मौलिक विशिष्टता में उलझी हुई है ”शमशेर की कविता का एक केंद्रीय गुण है अभिव्यक्ति कौशल की संश्लिष्टता
और यही शमशेर डंके की चोट पर घोषित करते हैं मुक्तिबोध की कविता ‘अँधेरे में’ को एक महान राष्ट्रीय कविता हम तो ‘अँधेरे में’ को महान राष्ट्रीय कविता भी मानते हैं – अद्वितीय राष्ट्र कविता भी – शमशेर की गवाही के साथ
शमशेर अंत तक ताजा बने रहे,नये बने रहे नवगति, नवलय, ताल छंद नव की जो आकांक्षा महाप्राण निराला ने व्यक्त की थी, वह शमशेर में आकार पा सकी आखिर शमशेर के लिए निराला ‘सघनतम की आँख’ जो थे अमूर्त कला शिल्प के सूक्ष्म चितेरे शमशेर की ही एक कविता ‘माई’ की पंक्तियाँ हैं – “होंठ में सो गये शब्द / भाव में खो गये स्वर / एक पल हो गया कितने अब्द”
‘अखिल की हठ-सी’ उनकी अभिव्यक्ति का रहस्य अखिल की चिंता से जुड़े बिना जानना संभव नहीं शमशेर की मिसाल सिर्फ शमशेर थे और कोई नहीं सुनने से अधिक पढ़ने की चीज हो गयी कविता के इस जमाने में शमशेर की कविता हड़बड़ी में सलटाये जाने की छूट नहीं देती वह धारा प्रवाह बाँचे जाने की चीज नहीं है साहित्य के धुंआधार प्रवचनकर्ताओं के लिये शमशेर की काव्यकला एक चुनौती थी, चुनौती रहेगी शमशेर ने अपना पाला कभी नहीं बदला, शत्रुपक्ष की लाख-लाख कोशिशों के बावजूद
दो पंक्तियों के बीच, कभी-कभी दो शब्दों के बीच शमशेर जो मौन साधते हैं, जो अंतराल देतें हैं, यदि वहाँ थम कर आगे न बढ़ा जाये, उनके इस्तेमाल किये गए विरामो को न पकड़ा जाये तो न तो उनकी अभिव्यक्ति का सही आस्वाद लिया जा सकता है, न कविता के मर्म तक पहुंचा जा सकता है
शमशेर संस्कार और संकल्प के द्वंद्व के कवि थे उन्हें विरासत में मिले संस्कार मध्यवर्ग के थे जब कि उनके संकल्प सर्वहारा के मुक्ति संग्राम के 1946 में ही वे जान गये थे कि दुविधाओं का अंत कहाँ है और नये समाधान, नयी अभिव्यक्ति की दिशा किधर उस वक्त की उनकी पंक्तियाँ है –
“घिर गया है समय का रथ कहाँ
लालिमा से मढ़ गया है राग
भावना की तुंग लहरें
बंध अपना, अंत अपना जान
रोलती है मुक्ति के उदगार”
भावना और उभरते यथार्थ की रगड़ से फूटती चिनगारियों ने शमशेर को नयी रौशनी दी थी वह समय
तेलंगाना- आंदोलन की पृष्ठभूमि का समय थायाद रखना चाहिये कि शमशेर ‘कम्युनिष्ट कम्यून’ में रह रहे थे – बम्बई में शमशेर ने अपना पथ, अपना पक्ष चुनने में कोई देर न की, कोई हिचक न दिखाई ‘ ‘मार्क्सवाद’ उनके लिये ऑक्सीजन था ! हाँ, आलोचक शिव कुमार मिश्र बिलकुल ठीक कहते हैं कि शमशेर इतने सहज कवि नहीं हैं, जिसे आसानी से घूंट घूंट पी लिया जाये
1949 में बात साफ़ होने और लड़ाई के नये रूप तलाशने की छटपटाहट के बीच उन्होंने लिखा – कामरेड रुद्रदत्त भारद्वाज की शहादत की पहली वर्षी के मौके पर – “ देखता है मौन अक्षय वट / क्रांति का एक वृहद कुंभ / क्रांतिमय निर्माण का / एक वृहद पर्व / चमकती असी धार-सी है / धार गंगा की / हरहरा कर उठ रहा है नव जन-महासागर ” मिथकीय प्रतीकों और नयी जनप्रेरणाओं का अवलेह शमशेर की कविताओं को सदा नयी सामर्थ्य देता रहा अक्षयवट का मौन और नव जन-महासागर की हरहराहट का एक साथ घटित यह संयोग बताता है कि शमशेर पूर्ण संश्लिष्टता के साथ यथार्थ देख रहे थे,परख रहे थे अगर वे विवादस्पद रहे तो किन्ही क्षेत्रों में अपनी अद्वितीयता के ही कारण उनके कलाकार में काल से होड़ लेने की अकूत ताकत बनी रही गहरी मानवीयता और जीवन-राग से सघन संपृक्तता के कारण शमशेर ने बहुत कम कवितायेँ लिखी होंगी इकहरी अभिव्यक्ति वाली उनका एक गीत देखें – “ धरा शिर / ह्रदय पर / वक्ष बांह से / तुम्हें मैं सुहाग दूँ / चिर सुहाग दूँ / प्रेम-अग्नि से तुम्हें / मैं सुहाग दूँ / विरह-आग से – तुम्हें / मैं सुहाग दूँ” शमशेर मुहब्बत और खूबसूरती की तलाश के अद्वितीय शब्द शिल्पी थे वे उस सियासत के खिलाफ लगातार जूझते रहे जो आदमी और आदमी के प्यार का रिश्ता तोड़ती है खूबसूरती की उनकी तलाश किसी एक देश और जाति तक नहीं रूकती उन्हें अमरीका का ‘लिबर्टी स्टेच्यु’ ‘मास्को के लाल तारे’ से कम खूबसूरत, कम लुभावना नहीं लगता सही अर्थों में वे विश्वचेतस कलाकार थे उन्होंने कहा था-“ सार हम होते/ अनुपम भूत भविष्य के/ यदि हम वर्तमान में/ एक साथ/ हँसते–रोते गाते/ एक साथ ? एक साथ ? एक साथ ?”
शमशेर शरीर से भले चले गए , भारतीय कविता से शमशेरियत को कभी विदा नहीं होना है थे, हैं और रहेंगे हिंदी कविता के आकाश में एक और सुरमई शिखर शमशेर बहादुर सिंह
पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज के महासचिव डॉ. अशोक सिंह ने कहा कि समाज ने सबसे अधिक जोर साहित्यिक कार्यक्रमों पर दिया है उन्होंने बताया कि सचिव मंडल के सर्वसम्मत निर्णयानुसार पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज, बांग्ला भाषी समाज के साथ सांस्कृतिक संवाद आरम्भ करने के लिये, भारतीय सिनेमा के जीनियस ऋत्विक घटक की फिल्म “मेघे ढाका तारा” के पचास वर्ष पर संगोष्ठी आयोजित करेगा और विश्वकवि रविंद्रनाथ टेगौर की 150 वीं जयंती को गरिमा के साथ मनायेगा यह वर्ष भारतीय कविता के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है कवि शमशेर बहादुर सिंह, फैज़ अहमद फैज़, नागार्जुन, अज्ञेय और केदारनाथ अग्रवाल का यह जन्मशती वर्ष है जिसे मनाने का निर्णय सचिव मंडल की बैठक में सर्वसम्मति से लिया गया है इसी श्रृंखला में आज ‘कवियों के कवि’ शमशेर बहादुर सिंह के जन्मशती वर्ष का उदघाटन ‘पाषाण’ जी ने किया है
शमशेर जन्मशती वर्ष के उदघाटन पर्व की अध्यक्षता करते कोलकाता प्रेस क्लब के भूतपूर्व अध्यक्ष राज मिठौलिया ने कहा कि समाज ने साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया है आशुतोष केसर ने सभी का आभार व्यक्त किया संचालन केशव भट्टड़ ने किया
केशव भट्टड़
कोलकाता 13 मई पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज द्वारा कोलकाता प्रेस क्लब के पहले हिंदी भाषी अध्यक्ष और पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज के कार्यकारी अध्यक्ष राज मिठौलिया की अध्यक्षता में आयोजित कवियों के कवि’ शमशेर बहादुर सिंह के जन्मशती वर्ष का 12 मई को समाज के कार्यालय में वरिष्ठ कवि श्री ध्रुवदेव मिश्र ‘पाषाण’ ने उदघाटन किया अपने उदघाटन वक्तव्य में ‘पाषाण’ ने कहा कि यह वर्ष बड़ा ही महत्वपूर्ण है ‘अज्ञेय’, ‘नागार्जुन’, फैज़ अहमद फैज़, केदारनाथ अग्रवाल और शमशेर बहादुर सिंह का यह जन्मशती वर्ष है ये सारे ही कवि जीवन के ताप से बने थे जीवन की सुविधाओं का रास्ता इन्होनें नहीं चुना एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं जिसने जन-ज्वार से अपने को अलग रखा उन्होंने शमशेर जन्मशती वर्ष के आयोजन के लिए पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज को बधाई देते हुए कहा कि शमशेर एक बेमिसाल मिसाल हैं
[शमशेर मुहब्बत और खूबसूरती की तलाश के अद्वितीय शब्द शिल्पी थे वे उस सियासत के खिलाफ लगातार जूझते रहे जो आदमी और आदमी के प्यार का रिश्ता तोड़ती है खूबसूरती की उनकी तलाश किसी एक देश और जाति तक नहीं रूकती उन्हें अमरीका का ‘लिबर्टी स्टेच्यु’ ‘मास्को के लाल तारे’ से कम खूबसूरत, कम लुभावना नहीं लगता सही अर्थों में वे विश्वचेतस कलाकार थे ]
“ शमशेर जी चूँकि किसी दौड़ में शामिल नहीं थे , अंतः उस अर्थ में उन्हें कहीं पहुँचना भी नहीं था पर जो चलती गाड़ी में सवार नहीं होता, वह पिछड़ जाता है इस तेज रफ़्तार वाली दुनिया को शमशेर जी सम्हाले हुए थे – कहना उनके प्रति अतिरिक्त श्रद्धा प्रकट करना होगा, पर शायद यह कहना आलोचनात्मक दृष्टि का परिचायक माना जायेगा कि तेज दौड़ती दुनिया में वे लगभग मिसफिट थे काश ! ऐसे दो-चार ‘मिसफिट’ हमें मिल सकें तो यह दुनिया इतनी निराशा से भरी न लगे....”
रंजना अरगड़े की ये पंक्तियाँ जहाँ शमशेर जी के कवि, रचनाकार का एक परिचय और महत्व बताती हैं वहीँ बेमिसालपन का रहस्य भी खोलती हैं शमशेर यह बेमिसालपन इसलिए भी – और इसलिए भी नहीं ; बल्कि इसलिए ही हासिल कर सके कि वे किसी ‘होड़’ और ‘दौड़’ की जल्दबाजी में नहीं थे इस होड़ और जल्दबाजी का जो नतीजा आज हिंदी रचनाशीलता भोग रही है – वह भी तो शमशेर जी के बेमिसालपन का महत्व हमें बताती ही है सचमुच हिंदी रचनाशीलता की दुनिया में तब भी और अब भी बेमिसाल रह गए हैं शमशेर जी अर्जित सत्य को अपनी अनुभूतियों के प्रति साक्षी बनाने के आग्रही शमशेर जी कहते हैं-“ कवि जिन सत्यों को उद्घाटित करता है, उनका वह अपनी अनुभूतियों में साक्षी होता है”
तात्कालिकता की होड़ से अलग रह कर ही मुमकिन हो पाया शमशेर का काव्यसृजन शमशेर के सर्जक
का सटीक मूल्यांकन करते लगते हैं मुझे आलोचक अरुण महेश्वरी जब वे लिखते हैं – “ शमशेर की कवितायेँ यथार्थ और स्वप्नों के अनेक रंगों वाले निकटस्थ और दूरस्थ परस्पर विलीन होते बिबों का, मौन और मुखर भावों का एक ऐसा निजी संसार है, रिक्तताओं की ऐसी आकर्षक घाटियाँ है जो पाठक को किसी सम्मोहक इंद्रजाल की भांति अपनी ओर खींचती और गहरे उतारती जाती है”
गहरे उतर कर देखें तो स्पष्ट हो जायेगा कि शमशेर रचित उनका निजी संसार और सम्मोहक इंद्रजाल छायावादी, रहस्यवादी वायवीयता के सामानांतर एक नए कलासंसार की भी सृष्टि है जो कविता और चित्रकला की बारीकियों की परस्पर घुलनशीलता के अभाव में असंभव थी इसी घुलनशीलता में ही छिपा है शमशेर का रचा बसाया निजी एकांत, जो उन्हें होड़ से अलग ‘काल से होड़’ लेने की शक्ति देता है वे निश्चय ही विशिष्ट थे किन्तु काफिले से अलग नहीं वे उस मुक्तिबोध के सखा थे जिनका आप्त कथन है-“ मुक्ति अकेले नहीं मिलती”
मुक्तिबोध से अधिक सटिक और मार्मिक शिनाख्त कवि कलाकार शमशेर की और कौन कर पाता ? मुक्तिबोध लिखते हैं – “ शमशेर निःसंदेह एक अद्वितीय कवि हैं उनकी काव्य यात्रा नितांत स्वाभाविक है बिलकुल खरी है साथ ही वह रसमय होते हुए उलझी हुई है – जितनी कि और जैसी कि प्रत्येक वास्तविकता, अपनी मौलिक विशिष्टता में उलझी हुई है ”शमशेर की कविता का एक केंद्रीय गुण है अभिव्यक्ति कौशल की संश्लिष्टता
और यही शमशेर डंके की चोट पर घोषित करते हैं मुक्तिबोध की कविता ‘अँधेरे में’ को एक महान राष्ट्रीय कविता हम तो ‘अँधेरे में’ को महान राष्ट्रीय कविता भी मानते हैं – अद्वितीय राष्ट्र कविता भी – शमशेर की गवाही के साथ
शमशेर अंत तक ताजा बने रहे,नये बने रहे नवगति, नवलय, ताल छंद नव की जो आकांक्षा महाप्राण निराला ने व्यक्त की थी, वह शमशेर में आकार पा सकी आखिर शमशेर के लिए निराला ‘सघनतम की आँख’ जो थे अमूर्त कला शिल्प के सूक्ष्म चितेरे शमशेर की ही एक कविता ‘माई’ की पंक्तियाँ हैं – “होंठ में सो गये शब्द / भाव में खो गये स्वर / एक पल हो गया कितने अब्द”
‘अखिल की हठ-सी’ उनकी अभिव्यक्ति का रहस्य अखिल की चिंता से जुड़े बिना जानना संभव नहीं शमशेर की मिसाल सिर्फ शमशेर थे और कोई नहीं सुनने से अधिक पढ़ने की चीज हो गयी कविता के इस जमाने में शमशेर की कविता हड़बड़ी में सलटाये जाने की छूट नहीं देती वह धारा प्रवाह बाँचे जाने की चीज नहीं है साहित्य के धुंआधार प्रवचनकर्ताओं के लिये शमशेर की काव्यकला एक चुनौती थी, चुनौती रहेगी शमशेर ने अपना पाला कभी नहीं बदला, शत्रुपक्ष की लाख-लाख कोशिशों के बावजूद
दो पंक्तियों के बीच, कभी-कभी दो शब्दों के बीच शमशेर जो मौन साधते हैं, जो अंतराल देतें हैं, यदि वहाँ थम कर आगे न बढ़ा जाये, उनके इस्तेमाल किये गए विरामो को न पकड़ा जाये तो न तो उनकी अभिव्यक्ति का सही आस्वाद लिया जा सकता है, न कविता के मर्म तक पहुंचा जा सकता है
शमशेर संस्कार और संकल्प के द्वंद्व के कवि थे उन्हें विरासत में मिले संस्कार मध्यवर्ग के थे जब कि उनके संकल्प सर्वहारा के मुक्ति संग्राम के 1946 में ही वे जान गये थे कि दुविधाओं का अंत कहाँ है और नये समाधान, नयी अभिव्यक्ति की दिशा किधर उस वक्त की उनकी पंक्तियाँ है –
“घिर गया है समय का रथ कहाँ
लालिमा से मढ़ गया है राग
भावना की तुंग लहरें
बंध अपना, अंत अपना जान
रोलती है मुक्ति के उदगार”
भावना और उभरते यथार्थ की रगड़ से फूटती चिनगारियों ने शमशेर को नयी रौशनी दी थी वह समय
तेलंगाना- आंदोलन की पृष्ठभूमि का समय थायाद रखना चाहिये कि शमशेर ‘कम्युनिष्ट कम्यून’ में रह रहे थे – बम्बई में शमशेर ने अपना पथ, अपना पक्ष चुनने में कोई देर न की, कोई हिचक न दिखाई ‘ ‘मार्क्सवाद’ उनके लिये ऑक्सीजन था ! हाँ, आलोचक शिव कुमार मिश्र बिलकुल ठीक कहते हैं कि शमशेर इतने सहज कवि नहीं हैं, जिसे आसानी से घूंट घूंट पी लिया जाये
1949 में बात साफ़ होने और लड़ाई के नये रूप तलाशने की छटपटाहट के बीच उन्होंने लिखा – कामरेड रुद्रदत्त भारद्वाज की शहादत की पहली वर्षी के मौके पर – “ देखता है मौन अक्षय वट / क्रांति का एक वृहद कुंभ / क्रांतिमय निर्माण का / एक वृहद पर्व / चमकती असी धार-सी है / धार गंगा की / हरहरा कर उठ रहा है नव जन-महासागर ” मिथकीय प्रतीकों और नयी जनप्रेरणाओं का अवलेह शमशेर की कविताओं को सदा नयी सामर्थ्य देता रहा अक्षयवट का मौन और नव जन-महासागर की हरहराहट का एक साथ घटित यह संयोग बताता है कि शमशेर पूर्ण संश्लिष्टता के साथ यथार्थ देख रहे थे,परख रहे थे अगर वे विवादस्पद रहे तो किन्ही क्षेत्रों में अपनी अद्वितीयता के ही कारण उनके कलाकार में काल से होड़ लेने की अकूत ताकत बनी रही गहरी मानवीयता और जीवन-राग से सघन संपृक्तता के कारण शमशेर ने बहुत कम कवितायेँ लिखी होंगी इकहरी अभिव्यक्ति वाली उनका एक गीत देखें – “ धरा शिर / ह्रदय पर / वक्ष बांह से / तुम्हें मैं सुहाग दूँ / चिर सुहाग दूँ / प्रेम-अग्नि से तुम्हें / मैं सुहाग दूँ / विरह-आग से – तुम्हें / मैं सुहाग दूँ” शमशेर मुहब्बत और खूबसूरती की तलाश के अद्वितीय शब्द शिल्पी थे वे उस सियासत के खिलाफ लगातार जूझते रहे जो आदमी और आदमी के प्यार का रिश्ता तोड़ती है खूबसूरती की उनकी तलाश किसी एक देश और जाति तक नहीं रूकती उन्हें अमरीका का ‘लिबर्टी स्टेच्यु’ ‘मास्को के लाल तारे’ से कम खूबसूरत, कम लुभावना नहीं लगता सही अर्थों में वे विश्वचेतस कलाकार थे उन्होंने कहा था-“ सार हम होते/ अनुपम भूत भविष्य के/ यदि हम वर्तमान में/ एक साथ/ हँसते–रोते गाते/ एक साथ ? एक साथ ? एक साथ ?”
शमशेर शरीर से भले चले गए , भारतीय कविता से शमशेरियत को कभी विदा नहीं होना है थे, हैं और रहेंगे हिंदी कविता के आकाश में एक और सुरमई शिखर शमशेर बहादुर सिंह
पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज के महासचिव डॉ. अशोक सिंह ने कहा कि समाज ने सबसे अधिक जोर साहित्यिक कार्यक्रमों पर दिया है उन्होंने बताया कि सचिव मंडल के सर्वसम्मत निर्णयानुसार पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज, बांग्ला भाषी समाज के साथ सांस्कृतिक संवाद आरम्भ करने के लिये, भारतीय सिनेमा के जीनियस ऋत्विक घटक की फिल्म “मेघे ढाका तारा” के पचास वर्ष पर संगोष्ठी आयोजित करेगा और विश्वकवि रविंद्रनाथ टेगौर की 150 वीं जयंती को गरिमा के साथ मनायेगा यह वर्ष भारतीय कविता के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है कवि शमशेर बहादुर सिंह, फैज़ अहमद फैज़, नागार्जुन, अज्ञेय और केदारनाथ अग्रवाल का यह जन्मशती वर्ष है जिसे मनाने का निर्णय सचिव मंडल की बैठक में सर्वसम्मति से लिया गया है इसी श्रृंखला में आज ‘कवियों के कवि’ शमशेर बहादुर सिंह के जन्मशती वर्ष का उदघाटन ‘पाषाण’ जी ने किया है
शमशेर जन्मशती वर्ष के उदघाटन पर्व की अध्यक्षता करते कोलकाता प्रेस क्लब के भूतपूर्व अध्यक्ष राज मिठौलिया ने कहा कि समाज ने साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया है आशुतोष केसर ने सभी का आभार व्यक्त किया संचालन केशव भट्टड़ ने किया
केशव भट्टड़
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