सांस्कृतिक राजधानी कोलकाता
केशव भट्टड़ कोलकाता को लंबे समय से अपने साहित्यिक, सांस्कृतिक और कलात्मक धरोहरों के लिए जाना जाता है। भारत की पूर्व राजधानी रहने से यह स्थान आधुनिक भारत की सांस्कृतिक सोच का जन्मस्थान बना। कोलकातावासियों के मानस पटल पर सदा से ही कला और साहित्य के लिए विशेष स्थान रहा है। यहां नयी प्रतिभाको सदा प्रोत्साहन देने की क्षमता ने इस शहर को अत्यधिक सृजनात्मक ऊर्जा का शहर (सिटी ऑफ फ़्यूरियस क्रियेटिव एनर्जी) बना दिया है। इन कारणों से ही कोलकाता को भारत की सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता है।
कोलकाता का एक खास अंग है पाड़ा, यानि पास-पड़ोस (मोहल्ला) के क्षेत्र। इनमें समुदाय की सशाक्त भावना होती है। प्रत्येक पाड़ा में एक सामुदायिक केन्द्र, क्रीड़ा स्थल आदि होते हैं। प्रत्येक पाड़ा में कम से कम एक कल्ब जरुर होता है, जहाँ लोगों में फुर्सत के समय अड्डा (यानि आराम से बातें करना) में बैठक करने, चर्चाएं आदि में सामयिक मुद्दों पर बात करने की आदत हैं। ये आदत एक मुक्त-शैली बुद्धिगत वार्तालाप को उत्साहित करती है और एक लोकतान्त्रिक परिवेश का निर्माण भी।
कोलकाता में बहुत सी इमारतें गोथिक, बरोक, रोमन, आर्मेनियम और इंडो-इस्लामिक स्थापत्य शैली की हैं। ब्रिटिश काल की कई इमारतें अच्छी तरह से संरक्षित हैं व अब धरोहर घोषित हैं, जबकि बहुत सी इमारतें ध्वंस के कगार पर भी हैं। 1814 में बना भारतीय संग्रहालय एशिया का प्राचीनतम संग्रहालय है। यहां भारतीय इतिहास, प्राकृतिक इतिहास और भारतीय कला का विशाल और अद्भुत संग्रह है। विक्टोरिया मेमोरियल कोलकाता का प्रमुख दर्शनीय स्थल है। यहां के संग्रहालय में शहर का इतिहास अभिलेखित है। यहां का भारतीय राष्ट्रीय पुस्तकालय भारत का एक मुख्य और बड़ा पुस्तकालय है। अकादमी ऑफ फाइन आर्ट्स में नियमित कला-प्रदर्शनियों का आयोजन और नाटकों के नियमित प्रदर्शन होते रहतें हैं।
शहर में नाटकों आदि की परंपरा थियेटर और सामूहिक थियेटर के रूप में जीवित है। 18 वीं सदी से इस परंपरा का इतिहास मिलता है । यह नाटक बंगाल की शानदार और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के दर्पण हैं। स्वतंत्रता आंदोलन में कोलकाता के नाटकों की भूमिका प्रखर रही और इसका उपयोग एक हथियार के रूप में किया गया। प्रादेशिक लोक नाटक बंगाल के विभिन्न क्षेत्रों में खेले जातें हैं और राष्ट्रीय स्तर पर भी लगातार इन्हें सराहा गया है। नाटक क्षेत्र के कुछ प्रसिद्ध नाम हैं- गिरीश चंद्र घोष, रबी राय, सिसिर भादुरी, बादल सरकार, उत्पल दत्त,अरुण मुख़र्जी, नीलकंठ सेनगुप्ता, शोभा सेन, सौमित्र चट्टर्जी, मनोज मित्र, श्यामानंद जालान, प्रतिभा अगरवाल, उषा गांगुली, प्रताप जायसवाल, अजहर आलम, उमा झुनझुनवाला आदि। राजस्थानी नाटकों की बंगाल में भी एक परंपरा रही है। नाटक क्षेत्र में राजास्थानियों में प्रमुख गोपाल कृष्ण तिवाड़ी, त्रिलोचन झा, प्रेमशंकर नरसी, गोपाल कलवाणी, केशव भट्टड़ ,राधेश्याम सोनी, बब्बू शर्मा आदि कुछ नाम हैं। भारतीय रंगमंच के इतिहास में पहली बार एक कलाकार का नाट्य पुनरावलोकन (रेट्रोस्पेक्टिव) कोलकाता में हुआ, जिसका आयोजन पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज ने किया रविन्द्र सदन,सिसिर मंच और ज्ञान मंच प्रेक्षागृहों में 8 मार्च से 14 मार्च 2007 तक कोलकाता के नाट्य प्रेमियों ने सिल्की जैन की अभिनय प्रतिभा देखी नाट्य समिक्षक प्रेमकपूर ने लिखा –“ अभिनय प्रतिभा के विस्फोट का नाम है सिल्की जैन”
कलकाता हिंदी पत्रकारिता, साहित्य और सिनेमा की जन्मभूमि रही है। यहां हिन्दी चलचित्र भी उतना ही लोकप्रिय है, जितना कि बांग्ला चलचित्र, जिसे टॉलीवुड नाम दिया गया है (यहां का फिल्म उद्योग टॉलीगंज में स्थित है)। यहां के लंबे फिल्म-निर्माण की देन है प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक बिमल राय, ऋत्विक घटक, सत्यजीत राय, मृणाल सेन, तपन सिन्हा, गौतम घोष, अपर्णा सेन, रितुपर्णो घोष, अनिंदिता सर्वाधिकारी आदि। हिंदी रजत पट को यहाँ के तक्निसिअनों, कलाकारों, संगीत निर्देशकों, गायकों और निर्देशकों ने समृद्ध किया है।
दुर्गा पूजा कोलकाता का सबसे महत्त्वपूर्ण और चकाचौंध वाला उत्सव है। यह त्यौहार प्रायः अक्तूबर के माह में आता है, पर चौथे वर्ष सितंबर में भी आ सकता है। अन्य उल्लेखनीय त्यौहारों में पोइला बैसाख, विश्वकर्मा पूजा, जगद्धात्री पूजा, सरस्वती पूजा, रथ यात्रा, पौष पॉर्बो, दीवाली, होली, क्रिस्मस, ईद आदि आते हैं। सांस्कृतिक उत्सवों में कोलकाता पुस्तक मेला, कोलकाता फिल्मोत्सव, डोवर लेन संगीत उत्सव और नेशनल थियेटर फेस्टिवल आते हैं।
उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी से ही बंगाली साहित्य का आधुनिकिकरण हो चुका है। यह आधुनिक साहित्यकारों की रचनाओं में झलकता है, जैसे बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय, माइकल मधुसूदन दत्त, रविंद्रनाथ ठाकुर, काजी नज़रुल इस्लाम और शरतचंद्र चट्टोपाध्याय आदि। इन साहित्यकारों द्वारा तय की गयी उच्च श्रेणी की साहित्य परंपरा को जीबनानंददास, बिभूतिभूषण बंधोपाध्याय, ताराशंकर बंधोपाध्याय, माणिक बंदोपाध्याय, आशापूर्णा देवी, शिशिरेन्दु मुखोपाध्याय, बुद्धदेव गुहा, सुकांत भट्टाचार्य, महाश्वेता देवी, समरेश मजूमदार, संजीव चट्टोपाध्याय, सुनील गंगोपाध्याय, विष्णुकान्त शाष्त्री, कन्हैयालाल सेठिया, ध्रुवदेव मिश्र ‘पाषण’, छविनाथ मिश्र, कल्याणमल लोढा, अलका सरावगी, कृष्ण बिहारी मिश्र, शंकर महेश्वरी, मानिक बच्छावत आदि लेखकों-कवियों ने आगे बढ़ाया है।
नगर में भारतीय शास्त्रीय संगीत और बंगाली लोक संगीत को भी सराहा जाता रहा है। बंगाली लोक संगीत में रबिन्द्र संगीत ,नजरुल गीति और बाउल गायन प्रसिद्ध हैं